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रामपुर में नवाब अहमद अली खान द्वारा बनाया गया शिवमंदिर, जहां आपसी भाईचारे के खिलते है फूल,

 

मुजस्सिम खान,

रामपुर का ऐतिहासिक भमरौआ मंदिर, जहां मुस्लिम समाज के लोग बढ़चढ़कर करते मंदिर के कार्यक्रमों में भागीदारी,

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रामपुर – भारत को आस्था का देश कहा जाता है। यही कारण है कि भगवान भोले शंकर के भक्त सावन माह आते ही उनकी भक्ति में लीन हो जाते हैं । सावन के पहले सोमवार को रामपुर के नवाब द्वारा 200 साल पहले बनाए गए ऐतिहासिक शिव मंदिर पर भी भक्तों के जुड़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इन सबके बावजूद इस ऐतिहासिक मंदिर की अहमियत जहां धार्मिक ऐतबार से तो है ही साथ ही धार्मिक सौहार्द भी यहां की फिजा में कूट कूट कर भरी है।

 

 

 

रामपुर के भमरौआ शत प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाला काफी बड़ा गांव है । यहां पर मुस्लिम समुदाय के महिला और पुरुषों को बड़ी बेसब्री से सावन के आने का इंतजार रहता है। इस गांव की परंपरा रही है कि जो भी महिलाएं ब्याह कर अन्य गांव या दूरदराज के इलाकों में चली गई हैं। वह शिवरात्रि या सावन के मौके पर गांव में ऐतिहासिक शिव मंदिर पर लगने वाले मेले में शिरकत करने के लिए कई दिन पहले ही चली आती हैं। दरसल भमरौआ के शिव मंदिर को रामपुर रियासत के चौथे नवाब अहमद अली खान ने वर्ष 1822 ईसवी में हिंदुओं की आस्था को देखते हुए बनवाया था ।इसके अलावा मंदिर के नाम कई एकड़ जमीन भी शाही फरमान के बाद की गई थी। यहां पर बड़ी संख्या में कांवरिया अपने इष्ट की पूजा अर्चना के लिए आते हैं और इनकी तादाद शिवरात्रि एवं माह सावन में अत्याधिक हो जाती है। गांव में सभी कांवरियों और शिव भक्तों का मुस्लिम समुदाय के द्वारा आदर सत्कार किया जाता है उनके के द्वारा यह परंपरा वर्षों पुरानी है जो आज भी यहां पर कायम है। मंदिर में पूजा अर्चना और शिव भक्तों से ना ही पास की मस्जिद में अजान देने और नमाज पढ़ने वालों को ही कोई एतराज है। और ना ही मंदिर में पूजा अर्चना और शिव भक्तों के प्रवेश के दौरान मस्जिद में होने वाली जान से ही कोई दिक्कत है। बस यही आपसी सौहार्द इस गांव को पूरे जनपद में खास बनाता है। जैसे-जैसे सावन का अंतिम सोमवार आएगा वैसे वैसे दूरदराज के इलाकों में शादी होकर जा चुकी महिलाएं अपने मायके मेला करने के उद्देश्य से वापस लौट आएंगी।

 

 

इस विषय पर पंडित नरेश शर्मा ने बताया की इस मंदिर के बारे में जो बात है “प्रत्यक्ष के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं होती हैं” आज यहां पर भगवान ने दर्शन दिए थे तब भी यहां कोई हिंदू बच्चा नहीं था। टोटल मुस्लिम आबादी थी और आज भी हंड्रेड परसेंट मुस्लिम पापुलेशन है उसके बावजूद भी इतना विशाल मंदिर का होना, आपने कहा यहां पर गांव के कल्चर की बात, कल्चर भी अपने आप में प्रमाण है कि आज तक के रिकॉर्ड में कभी कोई शिकायत भामरव्वा मंदिर से नहीं मिली, इतने बड़े-बड़े विशाल मेले होते हैं । लोगों के दरवाजे बंद हो जाते हैं और लोग परेशानी उठाते हैं उसके बाद भी लोग आपत्ति नहीं उठाते, यह यहां का कल्चर है और आपने यहां का इतिहास पूछा तो यह 1788 में इन्होंने यहां दर्शन दिए थे उसके बाद हल्के हल्के इनका नाम चलता रहा ।1822 में नवाब अहमद अली साहब मुझे पता चला उन्होंने आकर यह सारी प्रॉपर्टी मंदिर को दी और हमारे उस समय के पूर्वज जो मौर्य के मढैया गांव कहलाता है।

 

 

मोमिनपुर वहां से उनको बुलाया गया जिनका नाम था पंडित दयाल दास जी उनको इस मंदिर की चाबी सौंपी गई और तब से लेकर आज तक यह मंदिर प्रगति की ओर अग्रसर है।मीडिया द्वारा पूछा गया सवाल कि यहां पर टोटल मुस्लिम पापुलेशन है जब सावन आता है कावड़िया यहां पर जल चढ़ाने आते हैं तो किस तरह का यहां माहौल होता है किस तरह के यहां लोग मनाते हैं इस पर पंडित नरेश शर्मा ने बताया,, सारे गांव में खुशी का माहौल होता है उनके मेहमान भी इस मेले को देखने के लिए भमरव्व मंदिर आते हैं और सारे मेहमान आ करके मंदिर में पूरा सहयोग करते हैं ।कभी किसी को कोई आपत्ति नहीं होती ना मंदिर में जाने में किसी को कोई आपत्ति है कभी किसी तरह की कोई समस्या नहीं हुई।

 

इस विषय पर भामरव्वा गांव के ग्रामीण अनीस मियां ने बताया,, हमारे यहां यह बहुत पुराना मंदिर है यह नवाबों का बना हुआ है और यह मुस्लिम गांव है ।यहां पर किसी तरह की कोई बात नहीं होती है सब लोग मिलजुलकर इन का मेला कराते हैं। कोई दिक्कत और किसी तरह की कोई बात नहीं आती है और जो कावड़िए लोग आते हैं उनकी भी पूरी खिदमत की जाती है जहां जहां पर लोग बैठते हैं उनकी देखभाल की जाती है।

 

उन्होंने यह भी बताया कि सावन के टाइम जो कावड़िया आते हैं तो इस गांव की जो मुस्लिम बहन बेटी है जिनकी शादी हो गई क्या वह अपने मायके आती हैं। इस पर ग्रामीण अनीश मियां ने बताया, यहां पर मेला करने आती है मुस्लिम महिला अपने मायके से अपने गांव वापस आती हैं और यहां का मेला करके दो या तीन दिन रुक कर जाती है क्योंकि उनके गांव का मेला है इसलिए वह खास तरीके से आती हैं ।जैसे मोहर्रम के मेले पर आती हैं ऐसे ही यहां के मेले में भी आती हैं सहयोग पूरा देती हैं। यहां किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं ।है यहां लगभग 2 मेले लगते हैं एक तेरस का लगता है और एक सावन का लगता है और दोनों ही मेलों में मुस्लिमों का पूरा सहयोग रहता है।

 

 

इस विषय पर भामरव्वा गांव के प्रधान अब्दुल लईक ने बताया,, यह मंदिर हमारे यहां बहुत ऐतिहासिक मंदिर है और यह नवाबों ने बनवाया था उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है, इस मंदिर में और उसी परंपरा को लेकर आज तक चली आ रही है जैसे मेला लगता है तो हमारे गांव की लड़कियां आती है। जैसे त्योहारों पर आती हैं वैसे ही इस मेले पर भी आती हैं। और 2-2 दिन रह कर जाती हैं और बल्कि 2 दिन पहले से आ जाती है मैले के लिए सभी मुस्लिम महिलाएं हैं।। जो पुरानी उम्र दार है वह भी इस मेले पर आती है यह पूरा गांव ही मुसलमानों का है हिंदू आबादी यहां पर है ही नहीं, यहां पर मंदिर की कमेटी वाले भी सहयोग करते हैं। और सब गांव वाले भी सहयोग करते हैं ।जिस दिन मेला लगता है उसमें सारे लोग सहयोग करते हैं। कभी किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आती कभी ऐसा होता है कि ईद और मेला एक ही दिन होता है, उसके बावजूद भी कोई दिक्कत नहीं आती है। और यहां के मेले का लोग इंतजार करते हैं कि सावन आ रहा है यहां पर सावन के पूरे महीने में लाखों लोग आ जाते हैं ।यहां गांव की आबादी लगभग 52 सौ यहां पर मुसलमानों की आबादी लगभग 45 सौ होगी। यहां पूरे गांव-गांव में 45 सौ आबादी हैं और टोटल सब मुस्लिम हैं जब कावड़िया जल लेकर आते हैं तो मुस्लिमों का पूरा सहयोग रहता है। और बहुत खुशी का माहौल होता है और एक तो बहुत बड़ी बात यह है यहां बड़े बड़े अधिकारी आते हैं यह भी बहुत खुशी की बात है।

 

ग्रामीण शावेज ने बताया,, मंदिर की कहानी यह है कि यह बहुत पुराना मंदिर है यह हमारे बुजुर्गों से मंदिर है। यहां के लोग मेला आने का बच्चे सब इंतजार करते हैं बड़े तरीके से सेलिब्रेट करते हैं यह टोटल मुस्लिम गांव है। सावन के महीने में जो कावड़िया जल लेकर आते हैं तो कैसा माहौल रहता है, इस पर ग्रामीण शाहवेज ने बताया,, यहां बहुत अच्छा माहौल होता है और बहुत ही खुशी का माहौल होता है, और यहां पर मुस्लिम महिलाएं मेले का इंतजार करती हैं कि हमारे गांव में मैला लगेगा सावन का, उसके लिए काफी टाइम से इंतजार करती हैं और मेला करने के लिए अपने घर वापस आती है जिनकी शादी हो चुकी है और पूरा सहयोग रहता है गांव के मुस्लिम लोगों का, बहुत अच्छा माहौल रहता है कभी यहां कोई विवाद नहीं हुआ।

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