ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा
-भादों की अंधियारी काली रात्रि में षोडश कलाओं से युक्त साक्षात परब्रह्म परमात्मा कन्हैया के रूप में प्रकट होकर संसार के नकारात्मक अंधेरे को मिटाते हैं, और अपने तेजोमय पुंज से समस्त सृष्टि को जगमग करते हैं। साक्षात भगवान के अवतरण होने के दिवस को सभी सनातन प्रेमी जन्माष्टमी के उत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। जन्माष्टमी का व्रत महोत्सव मनुष्य के अंतस में उजास जागृत करता है।कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव का महत्व सर्वव्यापक है, भगवत गीता में एक कथन बहुत ही प्रभावशाली है। *यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।*
*अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥* “-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होगी, तब-तब मैं जन्म लूँगा”। बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो एक दिन उसका अंत अवश्य होता है। जन्माष्टमी के पर्व से गीता के इस कथन का बोध मनुष्य को होता है। इसके अतिरिक्त इस पर्व के माध्यम से निरंतर काल तक सनातन धर्म की आने वाली पीढ़ी अपने आराध्य के गुणों को जान सकेंगी और उनके दिखाए गए मार्ग पर चलने का प्रयास करेंगी। कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हमारे सभ्यता व संस्कृति को दर्शाता है।
युवा पीढ़ी को भारतीय सभ्यता, संसकृति से अवगत कराने के लिए, इन लोकप्रिय तीज-त्योहारों का मनाया जाना अति आवश्यक है। इस प्रकार के आध्यात्मिक पर्व सनातन धर्म के आत्मा के रूप में देखे जाते हैं। हम सभी को इन पर्वों में रुचि लेना चाहिए और इनसे जुड़ी प्रचलित कथाओं को जानना चाहिए।
भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि गत चंद्रमा, बुधवार का दिन हुआ था। भाद्रपद की अष्टमी वर्ष की सबसे ज्यादा अंधेरी रात मानी जाती है। भगवान अंधेरे को चीरकर समस्त संसार को प्रकाश देने के लिए प्रकट हुए। उस समय कारागार के सभी पहरेदार सो गए थे। देवकी-वसुदेव की बेड़ियाँ स्वतः ही खुल गई थीं और कारागार के दरवाजे अपने आप ही खुल गये । फिर आकाशवाणी ने वसुदेव को बताया कि वे अभी कृष्ण को गोकुल पहँचा दें। तत्पश्चात् कृष्ण के पिता वसुदेव कृष्ण को सूप में सुलाकर वर्षा ऋतु में उफनती हुई यमुना पार कर के गोकुल ले गए और नंद के यहाँ छोड़ आए। सभी लोग इसे कृष्ण का ही चमत्कार मानते हैं। वर्ना कंस ने तो कृष्ण के सात भाइयों को पैदा होते ही मार दिया था। फिर कृष्ण ने बचपन से युवावस्था तक कंस सहित अनेक राक्षसों का वध किया और अपने भक्तों का उद्धार किया। यही कारण है कि लोगउन्हें ईश्वर का अवतार मानकर उनकी पूजा-अर्चना एवं भक्ति कर तेहैं। इस प्रकार कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार आनंद ¸ सांप्रदायिक सद्भाव और अनेकता में एकता का त्योहार है।
जन्माष्टमी व्रत रखने से होते हैं अनेकों लाभ
हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव वाले दिन रखे जाने वाले व्रत की अपार महिमा बताई गई है, जिसे विधि-विधान से करने पर व्यक्ति की सभी कामनाएं शीघ्र ही पूरी होती हैं। मान्यता है कि जन्माष्टमी के व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे जीवन से जुड़े सभी सुख प्राप्त होते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह व्रत व्यक्ति को अकाल मृत्यु और पाप कर्मों से बचाते हुए मोक्ष प्रदान करता है। जन्माष्टमी का व्रत करने पर व्यक्ति को हजार एकादशी के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है।
जन्माष्टमी व्रत पूजन का विधान
उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातः काल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
-इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर सीधे हाथ में रखकर संकल्प करें –
*ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये।*
*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये।।*
अब मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकी जी के सूतिकागृह नियत करें। तत्पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हों।
इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें-
*‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।*
*वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।*
*सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।’*
जन्माष्टमी की रात को भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान करके तन और मन से खुद को पवित्र कर लें, फिर इसके बाद अपने एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर अपने लड्डू गोपाल को एक थाल में रखकर दूध, दही, शहद, घी, शक्कर आदि से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें साफ कपड़े से पोंछ कर उन्हें वस्त्र, आभूषण आदि पहनाएं। जन्माष्टमी पर कान्हा को पीले चंदन या फिर केसर का तिलक जरूर लगाएं। साथ ही उन्हें मोर के मुकुट और बांसुरी जरूर अर्पित करें. इसके बाद कान्हा को पुष्प, फल, पंजीरी,चरणामृत आदि अर्पित करें। भगवान श्री कृष्ण की पूजा में जो कुछ भी प्रसाद अर्पित करें। उसमें तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण के मंत्रों का विधि-विधान से जप करें। मान्यता है कि जन्माष्टमी की रात को भक्ति-भाव के साथ श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ और भजन का कीर्तन करने पर भगवान कृष्ण की विशेष कृपा बरसती है।