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जन्माष्टमी स्पेशल :बुधादित्य, ध्रुव योग के संयोग में जन्मेंगे कन्हैया,

पंडित मुकेश मिश्रा

बरेली। भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र के संयोग में मनाया जाता है लेकिन इस बार अष्टमी तिथि 18 अगस्त की रात्रि 9:20 से प्रारंभ होगी जो अगले दिन 19 अगस्त शुक्रवार को पूरे दिन व्याप्त रहने के बाद रात्रि 10:58 तक रहेगी इसी दिन मध्यरात्रि 1:52 पर रोहिणी नक्षत्र भी शुरू हो जाएगा ग्रह चाल के चलते जन्माष्टमी का पर्व 2 दिन का हो जाता है लेकिन इस बार शुभ संयोग 19 अगस्त को ही बन रहा है क्योंकि अष्टमी तिथि सूर्योदय और चंद्रोदय के समय भी व्याप्त है इसलिए अष्टमी तिथि की भी प्रधानता रहेगी और साथ में मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र का स्पर्श होगा इसलिए इस बार जन्माष्टमी का पावन पर्व 19 अगस्त शुक्रवार के दिन मनाना ही श्रेष्ठ रहेगा सबसे खास बात तो यह है कि इस बार जन्माष्टमी पर बुधादित्य योग और ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है यह दोनों योग पूजा पाठ में अत्यंत सिद्धि दायक माने जाते हैं बता दे कि जन्माष्टमी के दिन सूर्य के साथ बुध की युति होने से बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है।

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यह योग धन, वैभव, मान- सम्मान एवं प्रतिष्ठा कारक माना जाता है। इस योग में की गई पूजा से उच्चतम पद की प्राप्ति होती है ,और व्यक्ति के भाग्य को यह योग प्रभावी बना देता है। साथ ही, इस दिन ध्रुव योग व्याप्त रहेगा ।जो अपार सफलता का परिचायक है। अर्थात इन योगों के संयोग में जन्माष्टमी की पूजा का फल अनंत गुना होगा। यानी, भगवान कृष्ण की अपरंपार कृपा बरसेगी।

 

जन्माष्टमी व्रत रखने के होते हैं अनेकों लाभ
हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव वाले दिन रखे जाने वाले व्रत की अपार महिमा बताई गई है, जिसे विधि-विधान से करने पर व्यक्ति की सभी कामनाएं शीघ्र ही पूरी होती हैं। मान्यता है कि जन्माष्टमी के व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे जीवन से जुड़े सभी सुख प्राप्त होते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह व्रत व्यक्ति को अकाल मृत्यु और पाप कर्मों से बचाते हुए मोक्ष प्रदान करता है। जन्माष्टमी का व्रत करने पर व्यक्ति को हजार एकादशी के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है।

 

जन्माष्टमी पूजा की विधि

गौरतलब है कि जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप लड्डू गोपाल की आराधना की जाती है। जन्माष्टमी की रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्‍म के बाद दूध, दही, घी और पंचामृत से लड्डू गोपाल का अभिषेक करें। फिर उनका श्रृंगार करें। पूजा के दौरान लड्डू गोपाल का माखन, मिश्री और पंजीरी से भोग लगाएं। इसके साथ ही वस्त्र, तुलसी दल और फल-फूल भगवान को अर्पित करें। फिर भगवान लड्डू गोपाल को पालने में झुलाएं। अंत में जिस पंचामृत से लड्डू गोपाल का अभिषेक किया था उसका प्रसाद श्रद्धालुओं में बांटें और खुद भी ग्रहण करें।

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