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राष्ट्रीय कवि संगम एवं हिंदी साहित्य भारती के तत्वाधान में कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह सम्पन्न,

 20 साहित्यकार हुए सम्मानित, देर रात तक वही काव्य धारा

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नवाबगंज, बरेली। कवि डॉ कमलकांत तिवारी व कवि रोहित राकेश के संयोजन में ओजस्वी कवि चैतन्य चेतन एडवोकेट के जन्मोत्सव पर आर्य समाज तहसील चौराहा नवाबगंज बरेली में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ विधायक नवाबगंज डॉ एम पी आर्य ने मां सरस्वती के चित्र समक्ष दीप प्रज्वलित करके और बाजपुर से पधारी बाल कवियित्री काव्य श्री जैन ने सरस्वती वंदना करके किया।

 

 

 

इस कवि सम्मेलन में कवि डा कमलकांत तिवारी बरेली, रोहित राकेश बरेली, विश्वजीत निर्भय बरेली, सुरेंद्र जैन बाजपुर, काव्या जैन बाजपुर, कुलदीप अंगार बदायूं, विजय तन्हा शाहजहांपुर, भारती मिश्रा फर्रुखाबाद, उमेश त्रिगुणायत पीलीभीत, उपकार मणि फर्रुखाबाद, मुकेश अनमोल दिल्ली, अंशु छोकर आगरा, आलोक बेजान फर्रुखाबाद, कमलकान्त श्रीवास्तव बुलंदशहर आदि ने काव्य पाठ किया।

 

 

 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉक्टर एम पी आर्या (विधायक नवाबगंज), विशिष्ट अतिथि रविंद्र सिंह राठौड़ पूर्व जिला अध्यक्ष भाजपा, डॉक्टर ए के गंगवार ब्लॉक प्रमुख नवाबगंज, रवि गंगवार ब्लॉक प्रमुख नयोलडिया के द्वारा माल्यार्पण कर व सम्मान पत्र भेंट कर किया गया।

फर्रुखाबाद से आये गजलकार आलोक बेजान ने कहा –
उलझ जाते हैं जिसमें वो पहेली पाल रक्खी है।
इक नादान सी कमसिन सहेली पाल रक्खी है।
ज़मींदारी को गुज़रे एक अरसा हो गया कबका,
मगर ज़िल्ले इलाही ने हवेली पाल रक्खी है ।।

शाहजहांपुर से आये हास्य कवि विजय तन्हा ने कहा-
बेलन, चिमटा, करछुली या हो झाड़ू साथ।
बीवी सम्मुख जाइए, सदा जोड़कर हाथ।।

आगरा से पधारी कवियत्री अंशु छौंकर अवनी ने कहा-
कायरता की जंजीरों में कैद नहीं रह सकती मैं।
दुर्योधन के दुष्कर्मों को और नहीं सह सकती मैं।
रक्त खौलने लगा रगों का कृत्य देख दुःशासन के।
सुनो सभी इन हैवानों को मर्द नहीं कह सकती मैं।

दिल्ली से आए कवि मुकेश शर्मा अनमोल ने कहा-
आंसू पी कर औरों के चेहरों पर खुशियाँ लाता हूँ।
शांति सेवा न्याय का नारा जन जन तक पहुंचाता हूँ।
खाकी का गौरव लिखने की खातिर कलम उठाता हूँ,
इसीलिए मैं वर्दीवाला कलमकार कहलाता हूँ।।

सफल मंच संचालन करते रोहित राकेश ने कहा –
कभी न हिले वो बुनियाद चाहिए।
वतन हमेशा ही आबाद चाहिए।

फर्रुखाबाद के कवि उपकार मणि ने चैतन्य चेतन को जन्मदिन की बधाई देते हुए कहा –
उम्रभर उसने कमाई है बस यही दौलत,
उसके कमरे से किताबों की महक आती है।
आज तो वक्त का मारा है वो उपकार मगर,
उसके लहजे से नवाबों की महक आती है।

बरेली से पधारे ओजस्वी कवि कमलकांत तिवारी ने कहा –
चाहें रण छिड़ जाए चाहें देखें कितना रक्त बहेगा।
किंतु बैरियों की घातों को अब यह भारत नहीं सहेगा।
वतन विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने वालों सुन लो,
भारत जिंदाबाद रहा है, भारत जिंदाबाद रहेगा।।

पीलीभीत से हास्य कवि उमेश त्रिगुणायत अदभुत ने चैतन्य चेतन को जन्मदिन की बधाई देते हुए कहा –
हो सुखी समृद्ध जीवन विघ्न दुख सम्मुख न आएं,
दृष्टिगत हो लालिमा मुख पर निरोगी स्वस्थ काया।

डॉ चैतन्य चेतन एडवोकेट ने कहा –
अगर राम की जीवन गाथा बाल्मीकि न गाते।
ज़न ज़न की भाषा में उसको तुलसी न दोहराते।
अखिल सृष्टि के पोषक विष्णु के अवतारी होकर,
राम इस डरा पर ज़न ज़न के राम नहीं हो पाते।।

आगरा से पधारे पदम गौतम ने कहा –
धर्महीन रथ के पहिये का पथ में रुकना निश्चित है।
रामनाम से विमुख हुए शीषों का झुकना निश्चित है।
महावीर हनुमान की पूंछ में आग लगाने वाले सुन लो,
चांदी हो या सोने की, लंका का फुंकना निश्चित है।।

बाजपुर से पधारे डॉक्टर सुरेंद्र जैन ने कहा-
पुत्र भारत देश के जो देश को अखंड रखें ऐसी देव भूमि की जवानी को नमन है।
युवाओं का तन मन झंकार देने वाली क्रांतिकारियों की कहानी को नमन है।

बरेली से पधारे विश्वजीत निर्भय ने कहा –
बड़े अच्छे देश के छोटे से पहरेदार हम भी हैं।
सुरक्षा में अमन चैन के आधार हम भी हैं।
हमारे सामने इंसानियत का खून हो जाए,
अगर चुपचाप सहते हैं तो जिम्मेदार हम भी हैं।।

बदायूं से पधारे कुलदीप अंगार ने कहा –
समूचे देश को उनकी अलग सौगात होती है
यही सच है शहीदों की न कोई जात होती है।
मरे चमडी़ या दमड़ी पर तो बोलो क्या मरे यारों,
वतन पर मरने वालों की निराली बात होती है।।

बुलंदशहर से आये कमलकांत श्रीवास्तव ने कहा –
प्यार का पहला अक्षर ही आधा हो तो प्यार पूरा हो कैसे कहो राधा।
थोड़ा इस जन्म में थोड़ा फिर अगले जन्म में प्यार पूरा करेंगे करो वादा।

फर्रुखाबाद से आयीं भारती मिश्रा ने कहा-
न जाने कैसे जिया करती हैं ये औरतें।
जीवित नहीं हैं सिर्फ सांस लिया करती हैं ये औरतें।

राजस्थान से पधारे पदम गौतम ने कहा –
प्रेम का किरदार बौना हो नहीं सकता।
प्रीत सा बहुमूल्य सोना हो नहीं सकता।
कीमती से कीमती बिस्तर पर सो लेना,
मां के आंचल जैसा बिछौना हो नहीं सकता।।

आगरा से पधारे ओजस्वी कवि मोहित सक्सेना ने सिंह दहाड़ करते कहा-
मां भारती के भाल पर जब कल गाड़ी जा रही हो।
गुरुसभा में रोज पांचाली उधाडी़ जा रही हो।
तो कहो दूस्साशानो का बक्ष फाडे़ं क्यों नहीं,
सिंघड़ी के पुत्र हैं तो हम दहाड़े क्यों नहीं।।

आगरा से पधारे गया प्रसाद मौर्य ने कहा-
राम तेरे नाम को प्रणाम काहे बारिबार जग विच आप कैसी लीला रचि डारे हो।
सदियों से पड़े रहे सीखचों के बीच आप आप जब चाहे तब ताले तोड़ डारे हो।

देर रात तक कविताओ की महफ़िल चलती रही, श्रोताओं ने भी हर शेर पर तालियां बजा कवियों का उत्साहवर्धन किया, सम्मान समारोह के उपरांत कार्यक्रम का समापन हुआ।

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