लखनऊ : यूपी के कई जिलों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हो चुकी है । इस प्रणाली से पुलिस अधिकारी को जिला अधिकारी और उसके समक्ष अधिकारियो के बराबर अधिकार मिल जाते है। जिसके तहत पुलिस अधिकारी को किसी भी विषम परिस्थिति में अपने विवेक के हिसाब से निर्णय लेने के अधिकार मिल जाता है। इस प्रक्रिया के तहत पुलिस शांतिभंग की आशंका में निरुद्ध करने से लेकर गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और रासुका तक की कार्रवाई करने का अधिकार भी मिल जाता है। माना जा रहा है कि पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने से जिलों में कानून व्यवस्था बेहतर हो जाती है। यह व्यवस्था लखनऊ , नोएडा , कानपुर , वाराणसी में लागू होने के साथ अब गाजियाबाद , आगरा , प्रयागराज में भी लागू हो गई है।
जानकारों के मुताबिक पुलिस आयुक्त प्रणाली में डीएम से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को डीएम के आदेश का इंतजार नहीं करना पड़ता है । जिले की कानून व्यवस्था से जुड़े सभी फैसलों को लेने का अधिकार कमिश्नर के पास होते है । होटल के लाइसेंस, बार के लाइसेंस, हथियार के लाइसेंस देने का अधिकार भी इसमें शामिल होता है । धरना-प्रदर्शन की अनुमति देना या न देना और विषम परिस्थिति के समय लाठीचार्ज के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार भी पुलिस कमिश्नर के पास होता है ।
पुलिस आयुक्त सिस्टम में यह होते है पद
पुलिस कमिश्नर सीपी
ज्वाइंट कमिश्नर जेसीपी
असिस्टेंट कमिश्नर एसीपी
डिप्टी कमिश्नर डीसीपी
ब्रिटिशकाल में था पुलिस कमिश्नरी सिस्टम
भारत में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम ब्रिटिशकालीन है , भारत में इसका चलन वर्ष 1861 से दिखा था । भारत के बड़े शहरों में भी बेहतर कानून-व्यवस्था के लिए समय-समय पर पुलिस कमिश्नरों की नियुक्ति होती रही है। पुलिस कमिश्नरी में दंड प्रक्रिया संहिताके तहत सारे अधिकार पुलिस कमिश्नर रखता है। जिले के जिलाधिकारी से पुलिस के मामले में कोई निर्देश लेने की आवश्यकता नहीं होती।