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चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति का आधार है चतुर्मास, चतुर्मास में होता है पूजा का सर्वाधिक महत्व,

10 जुलाई से 5 नवंबर तक रहेगी चतुर्मास की अवधि.
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बरेली: व्रत, उपासना, साधना आदि के चार माह को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी से प्रारंभ होता है, जिसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। इसका समापन कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को होता है, जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस अवधि में भगवान विष्णु शयन करते हैं और भगवान शिव सृष्टि को संभालते हैं। इन चार माह में व्रत व उपासना के जरिये चारों तरह के पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन चार महीनों में भागवत कथा, राम कथा, शिव पुराण कथा आदि श्रवण करने का खासा महत्व है।

 

 

सबसे ज्यादा यज्ञ भी इन्हीं चतुर्मास में होते हैं। कहते हैं, इन दिनों की गई पूजा- उपासना, यज्ञ, कथा श्रवण का फल चतुर्मास में चौगुना प्राप्त होता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए की गई साधना इन दिनों तीव्रता से सफलीभूत होती है। इसीलिए साधु- संत, ऋषि -मुनि इस चतुर्मास में एकांतवास करते है। और जप-तप, ज्ञान-साधना में लीन होकर अपने आराध्य की कृपा सरलता से प्राप्त करते हैं। लेकिन इस चतुर्मास में मांगलिक शुभ कृत्य के लिए शास्त्रों में निषेध माना गया है। इस अवधि में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह संस्कार, मुंडन, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्यों पर पूर्णता विराम लग जाता है। लेकिन इन दिनों लेन-देन, खरीदारी, निवेश आदि के लिए शुभ मुहूर्त ज्योतिष शास्त्र में दिए जाते हैं।

 

 

लेकिन शास्त्रों के अनुसार चतुर्मास में भले ही शुभ कार्य न हो लेकिन इस दौरान बड़े त्यौहार इसी अवधि में मनाए जाते हैं। भगवान शिव का पावन महीना सावन जो भोले के भक्तों के लिए खास महीना मान मान जाता है। इस महीने में भक्त अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए गंगा जी से जल लाकर के शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। और भोले बाबा भक्तों पर असीम आशीर्वाद इसी माह में बरसाते हैं। भादो के महीने में कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी जैसे विशाल त्यौहार मनाए जाते हैं। वही अश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का महापर्व कनागत आता है। इसमें लोग अपने पितरों की पूजा कर पितृ ऋण से मुक्त होते हैं। आगे नवरात्र में मां भगवती के प्रति अपार श्रद्धा कार्तिक में दीपावली जैसे बड़े त्यौहार भारतवर्ष में धूमधाम और उत्साह से मनाये जाते हैं।

 

 

शास्त्रो की मान्यता अनुसार इस अवधि में परमात्मा की भक्ति करने से ज्ञान का विकास होता है और परमात्मा को प्राप्त करने का वैराग्य। जब भक्ति, ज्ञान, वैराग्य का संगम होता है। तो धर्म -अर्थ -काम -मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति बड़ी सहजता से हो जाती है। इसलिए यह चतुर्मास भगवान की कृपा के खास महीनों में गिने जाते हैं। बात करें बौद्ध धर्म की तो बौद्ध धर्म में भी चतुर्मास की काफी मान्यता है। माना जाता है कि गौतम बुद्ध राजगीर के राजा बिम्बिसार के शाही उद्यान में रहे, उस समय चौमासा की अवधि थी। कहा जाता है साधुओं का बरसात के मौसम में इस स्थान पर रहने का एक कारण यह भी था। कि उष्णकटिबंधीय जलवायु में बड़ी संख्या में कीट उत्पन्न होते हैं जो यात्रा करने वाले भिक्षुकों द्वारा कुचल जाते हैं। इस इस तरह से चौमासा को बौद्ध धर्म के अनुयाई भी काफी मान्यता देते हैं।

 

 

 

यहां तक कि जैन संप्रदाय भी चौमासा के नियमो को अपने धर्म के अनुसार अनुसरण करते है।जैन धर्म में चौमासे का बहुत अधिक महत्व होता हैं। वे सभी पूरे महीने मंदिर जाकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं एवं सत्संग में भाग लेते हैं। घर के छोटे बड़े लोग जैन मंदिर परिसर में एकत्र होकर नाना प्रकार के धार्मिक कार्य करते हैं। गुरुवरों एवं आचार्यों द्वारा सत्संग किये जाते हैं, एवं मनुष्यों को सद्मार्ग दिखाया जाता हैं। इस तरह इसका जैन धर्म में बहुत महत्व है।

 

चातुर्मास में मूलत: बारिश का मौसम होता है। इस समय बादल और वर्षा के कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं आ पाता, सूर्य का प्रकाश कम होना, देवताओं के सोने का ही प्रतीक है। इस समय शरीर की पाचन शक्ति भी कम हो जाती है, जिससे शरीर थोड़ा कमजोर हो जाता है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि चातुर्मास में (मुख्यत: वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु (बैक्टीरिया और वायरस) उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए सावधान होकर इस चतुर्मास के महीने में खानपान आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है|

 

पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इन चार महीनों तक पाताल में राजा बलि के यहां निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। अर्थात इस समय भगवान विष्णु विश्राम अवस्था में होते हैं, इसलिए इस दौरान सकारात्मक शक्तियों को बल पहुंचाने के लिए व्रत उपवास हवन यज्ञ करने का विधान अनेक शास्त्रों में वर्णित है।
इस बार तो हरिशयनी एकादशी के दिन शुभ योग व्याप्त रहा जिस कारण से चतुर्मास की शुरुआत भी शुभ योग से हुई है इसलिए इस बार चतुर्मास बेहद शुभ सूचक है।

 

चतुर्मास के कुछ नियम भी शास्त्रों में बताए गए हैं चतुर्मास व्रत के दौरान
व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है। चतुर्मास में मांस मदिरा का सेवन करने से आयु क्षीण होती है। इसलिए मांस मदिरा और तामसी वस्तुओं से परहेज करना चाहिए। कुल मिलाकर सन्मार्ग पर चलना ही चतुर्मास का मूल उद्देश्य है

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