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धर्मशहर

सभी मनोरथों को परिपूर्ण करती है देवोत्थान एकादशी

 

बरेली। सभी एकादशी में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण देव उठानी एकादशी इस बार 4 नवंबर को पड़ रही है। दरअसल इस बार एकादशी का मान प्रातः सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक रहेगा। ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा के अनुसार जिस मनोरथ का फल त्रिलोक में कहीं ना मिल सके देवोत्थान एकादशी व्रत से सहजता से प्राप्त हो जाता है। इस एकादशी का महत्व इसलिए जाना होता है। क्योंकि भगवान विष्णु आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष एकादशी को विश्राम के लिए क्षीरसागर में चले जाते हैं। चार महीने विश्राम के बाद इस एकादशी को भी भगवान जाग जाते हैं। और भगवान के जागते ही चार महीनों से रुके हुए मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। यह दिन अबूझ मुहूर्तों में आता है। इस दिन को भी कार्य प्रारंभ करने से संपन्नता और भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है। इस एकादशी पर तुलसी शालिग्राम का विवाह भी किया जाता है।

 

 

बता दे, तुलसी का महत्व पदम पुराण ब्रह्मवर्तेक पुराण, स्कंद, भविष्य पुराण के साथ गरुड़ पुराण में भी बताया गया है तुलसी का धार्मिक महत्व है। इसके साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है तुलसी का पौधा उम्र बढ़ाने के साथ बैक्टीरिया और वायरल इन्फेक्शन से भी लड़ता है। इस एकादशी को व्रत करने से भगवान विष्णु का पूजन करने से संतानहीनो को संतान की प्राप्ति होती है। बता दे संतान की कामना रखने वालों को संतान गोपाल मंत्र का जप, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। भगवान के चरणोंदक पीने से जन्म जन्मांतर के पापों का शमन हो जाता है।विधि- विधान से पूजन किया जाए तो बैकुंठ भी सरलता से प्राप्त हो जाता है।

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