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कलम बरेली की पत्रिका एक संग्रहालय से कम नहीं : रमेश गौतम

बरेली। कलम बरेली की’ पत्रिका का चौथा अंक हमारे सामने शहर बरेली के अतीत, वर्तमान और भविष्य का एक ऐसा चित्र प्रस्तुत करता है जो हमें अपने शहर के प्रति दायित्व बोध से जोड़ता है। अब तक के सभी अंक शहर की विविधायामी चेतना के प्रतिनिधि हैं।
पत्रिका के संपादक वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना ने बतौर पत्रकार अपने समय और समाज के प्रति जिम्मेदार भूमिका निभाई है।अमर उजाला, विश्व मानव, दैनिक दिव्य प्रकाश, दैनिक आज, दैनिक नवसत्यम जैसे अखबारों में पत्रकारिता और बाद में दैनिक जागरण में 23 वर्ष लम्बी सेवा के बाद निवृत्ति और फिर ‘कलम बरेली की’ पत्रिका का आरम्भ पत्रकारिता के प्रति उनके समर्पण का ही उदाहरण है।

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बरेली शहर की जीवन शैली, नागरिकों की सोच, यहाँ की सभ्यता और संस्कृति पर उनकी गहरी पकड़ है। उनकी शोधपरक व अन्वेषक दृष्टि शहर की नब्ज को टटोलती है। शहर की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक गतिविधियों की उन्हें अच्छी जानकारी है। निर्भय सक्सेना की दिनचर्या में शहर की गतिविधियों की पत्रकार की दृष्टि से जाँच-पड़ताल पहले है,घर-संसार बाद में। उनके व्यक्तित्व की यही सादगी और सहजता और समर्पण उनके कृतित्व में भी दिखाई देता है।’ कलम बरेली की ‘ की पत्रिका उनके इसी श्रम और समर्पण का सुफल है।

 

 

‘ कलम बरेली की ‘ पत्रिका के अंक चार में बतौर संपादक उन्होंने बरेली की बिखरी धरोहर को समेटने का प्रयास किया है। इस चौथे अंक में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा/अमरनाथ में बाबा बर्फानी के यात्रा संस्मरण/शिवखोडी की गुफा, जम्मू /नैमिषारण्य चक्र तीर्थ/ हरिद्वार की सायंकालीन आरती/ (निर्भय सक्सेना)आदि के रोचक यात्रा विवरण मन मोह लेते हैं। इसी तरह पांचाल प्रदेश की लीलौर झील (निर्भय सक्सेना) जैसी जानकारियां हमें प्रबुद्ध करती हैं। बरेली की हर दौर में रही ऐतिहासिक भूमिका (तुलई सिंह गंगवार )महत्वपूर्ण आलेख हैं। बरेली के चारों दिशाओं में स्थापित हैं ,नाथ मन्दिर (डा राजेश शर्मा) नामक आलेख नाथ परम्परा का परिचय और बरेली में नाथ मन्दिरों की स्थापना, वास्तुशिल्प व पूजा- विधान का विशद विश्लेषण करता है।सुभाष नगर की रामलीला (अनुराग उपाध्याय) स्थानीय सांस्कृतिक चेतना और उसकी जीवन्तता का साक्ष्य है, लेख में यहाँ की रामलीला का क्रमिक विकास का विवरण उल्लेखनीय है।

 

एक समय ऐसा भी रहा जब बरेली नगर अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर प्रतिष्ठा के शिखर पर था। निस्स्वार्थ चिकित्सक अपने सेवा भाव से मरीजों में भगवान की तरह पूजे जाते थे। क्लारा स्वैन हास्पिटल जिसे हम मिशन अस्पताल के रूप में जाना जाता है इसी कालखण्ड का गवाह है। क्लारा स्वैन बरेली ने बरेली में हास्पिटल बना कर रचा नया इतिहास (रणजीत पांचाले) आलेख पाठकों के दुर्लभ दस्तावेज है। इससे आज की चिकित्सा सेवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। बरेली की सांस्कृतिक धरोहर (राजेश गौड़), बरेली कालेज के महनीय प्राध्यापक- (प्रो एन एल शर्मा), माध्यमिक शिक्षक संघ- (इन्द्रदेव त्रिवेदी), पं राधे श्याम कथावाचक पर सामग्री (रमेश गौतम, रणजीत पांचाले, हरी शंकर शर्मा),बरेली की जैव विविधता- (डा आलोक खरे) क्रांतिकारियो के रोचक प्रसंग- (सुरेश बाबू मिश्रा), विलक्षण व्यक्तित्व आचार्य देवेन्द्र देव- (उपमेन्द्र सक्सेना) आदि अनेक ऐसे आलेख संग्रहीत हैं जो पत्रिका गम्भीर बनाते हैं।

 

 

रचनात्मक व्यक्तित्व के धनी इन्द्रदेव त्रिवेदी- (रामकुमार अफरोज), इस्मत चुगताई, राजेन विद्यार्थी स्वयं में एक संस्था – ( नि स )व डा हर स्वरूप श्याम- (संजय सक्सेना) जैसे लेख हमें नयी जानकारी देते हैं।पत्रिका में सामुदायिक-सामाजिक कार्यक्रमों की विभिन्न रिपोर्ट्स इसे महत्वपूर्ण बनाती हैं। पत्रिका के संपादक निर्भय सक्सेना जी इसके लिए बधाई के पात्र हैं।

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