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कायस्थ समाज नौकरी देने वाला बने : अनिल सिन्हा,

 निर्भय सक्सेना ,

ब्रिक्स के जोहांसबर्ग सम्मेलन में भारतीय दल के साथ शामिल थे कारोबारी अनिल सिन्हा,

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गांधीधाम के कच्छ में मजदूरों के लिए बनवाए 22 कमरे ,

बरेली। कई देशों में कारोबार करने वाली अंकिता ओवरसीज के चेयर पर्सन अनिल सिन्हा ने बताया की उनकी दक्षिण अफ्रीका के कुछ उद्यमियों से वार्ता हुई है जिसमे वह जोहांसबर्ग में एक कॉस्मेटिक फैक्ट्री के साथ दवा का संयुक्त उद्यम लगाने पर टाईअप करने पर मंत्रणा पाइप लाइन में हैं । अभी भी उनका दक्षिण अफ्रीका सहित 28 देशों में अंकिता ओवरसीज के बैनर से कारोबार चल रहा है। हाल में ही गुजरात के गांधीधाम के कच्छ में मजदूरों के लिए उन्होंने 22 कमरो का निर्माण भी कराया।

 

 

 

स्मरण रहे अनिल सिन्हा भी विगत माह ब्रिक्स सम्मेलन के भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल होकर दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में 22 अगस्त से 24 अगस्त 2023 को हुए ब्रिक्स सम्मेलन में गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भारत के उद्यमियों में अकेले वह ही कायस्थ समाज के उद्यमी थे। साउथ अफ्रीकन चेप्टर दि बिजनेस काउंसिल ( एस ए बी बी सी) एवम करेंट चेयर ऑफ ग्लोबल ब्रिक्स बिजनेस काउंसिल के चेयरपर्सन बूसी मेबुजा ने अनिल सिन्हा को 22 अगस्त 2023 को जोहांसबर्ग में होने वाले बिजनेस सम्मेलन का आमंत्रण दिया था।


 

 

अंकिता ओवरसीज के चेयरपर्सन अनिल सिन्हा ने बताया की उनकी कंपनी दक्षिण अफ्रीका में लगभग 60 से 70 करोड़ का वार्षिक व्यापार करती है । अनिल सिन्हा ने बताया दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग के सैंडटन कन्वेंशन हाल में यह बिजनेस मीटिंग 22 अगस्त 2023 को हुई थी। जोहांसबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कई देश के राष्ट्राध्यक्ष ने भी मंच साझा किया था। ब्रिक्स का नाम इसके सदस्यीय देशों के आधार पर रखा गया। ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका सदस्य हैं। ब्रिक्स दुनिया के पांच सबसे बड़े विकासशील देशों-ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका को एक साथ लाता है।

पत्रकार निर्भय सक्सेना

 

 

अंकिता ओवरसीज के अनिल सिन्हा नया नाम नहीं हैं। बरेली के कायस्थ चेतना मंच के वैवाहिक परिचय सम्मेलन, सुनील सक्सेना के क्रिकेट टूर्नामेंट में भी वह बरेली आकर हमेशा सहभाग करते रहे हैं। बीते दिनों बरेली आने पर उद्यमी एवम समाजसेवी अनिल सिन्हा का दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में जाने पर समाज को गौरव देने पर कायस्थ चेतना मंच ने उनको सम्मानित भी किया। रोटरी के मंडल गवर्नर के निवास पर कायस्थ चेतना मंच के संरक्षक अनिल कुमार एडवोकेट, राजेंन विद्यार्थी, अध्यक्ष संजय सक्सेना, उपाध्यक्ष निर्भय सक्सेना, अखिलेश कुमार, महामंत्री अमित सक्सेना बिंदु एडवोकेट ने अंग वस्त्र, बुके एवम मोमेंटो देकर उनका अभिनंदन किया। अंकिता ओवरसिजके चेयर पर्सन अनिल सिन्हा ने कहा की कायस्थ समाज अब नोकरी मांगने की जगह नोकरी देने वाला समाज बने।

 

 

सरकार सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्यम (एम एस एम ई) को बढ़ावा दे रही है। आप लोग भी लघु उद्यम लगाने में आगे आएं। कायस्थ समाज इस दिशा में आगे बढ़े। हम सब को कायस्थ होने पर गर्व होना चाहिए। मितुल विद्यार्थी एवम इशिता विधार्थी ने उनसे जी एस टी के बारे में कई सवाल पूछे जिसका अनिल सिन्हा ने जी एस टी को उद्यम के लिए अच्छा बताया। उन्होंने राजेन विद्यार्थी के कार्यालय का भी अवलोकन कर उनके परिवार के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने पर गर्व व्यक्त किया और शांति शरण विद्यार्थी के चित्र को नमन किया।

 

कभी मंदिर के बाहर फूल बेचकर गुजारा कर अपनी पढ़ाई पूरी कर वी ए में विश्व विद्यालय में भी टॉप किया था। आज उन्ही अनिल कुमार सिन्हा का देश ही नहीं अन्य 18 देशों में भी कृषि उत्पाद के निर्यात का कारोबार फैला हुआ है। आज भी वह जमीन से जुड़े ही हैं और इतने सरल समाजसेवी हैं कि हर दुख सुख में वह असहाय लोगो की मदद में भी कभी पीछे नहीं रहते। मूल निवासी भले ही वह बिहार के मुजफ्फरपुर के हों पर बरेली में भी अनिल सिन्हा ने कई संस्थाओं की मदद, के साथ ही सामूहिक शादियों में भी अपना योगदान दे चुके हैं।

 

 

 

वात्सालय स्कूल की भी उन्होंने मदद की। अनिल सिन्हा आजकल माहेश्वर लक्ष्मी मेमोरियल फाउंडेशन के साथ ही अंकिता ओवरसीज के भी कर्ताधर्ता हैं। बरेली में अनिल जी के माहेश्वर लक्ष्मी मेमोरियल फाउंडेशनने एक निर्धन विधवा महिला द्वारा संचालित मानसिक एवं शारीरिक तौर पर विकलांग बच्चों के लिए वात्सलय स्कूल में कुछ बच्चों के भरण-पोषण एवं शिक्षा का दायित्व में योगदान किया। इसके अलावा बरेली में उनके माहेश्वर लक्ष्मी मेमोरियल फाउंडेशन ने 28 गरीब लड़कियों का सामूहिक विवाह करवाने में भी मदद की थी। कोविड कल में बरेली में भी अपनी संस्था के माध्यम से मास्क एवम सेनिटाइजर, किट का भी वितरण किया था। गरीबी में पले बढ़े हर व्यक्ति की अपनी कोई न कोई पुरानी यादें भी होती हैं। विफलता के बाद भी सपने को पूरा करने का उसमे जुनून होता है उसे ही अपनी मंजिल मिलती है।

 

 

 

यही परिचय है मध्यम वर्गीय परिवार के मुजफ्फरपुर, बिहार के निवासी रहे अनिल कुमार सिन्हा का। अब अनिल कुमार सिन्हा दिल्ली में रहकर अंकिता ओवरसीज के मालिक भी हैं। उनका कारोबार भारत के अलावा 18 देशों में फैला हुआ है। अनिल जी ने मिलने पर अपने बारे में बताया की भारत में उदारीकरण के बाद भारत में जब 21वीं सदी में जब व्यवसाय के नए आयाम स्थापित होने का दौर चल रहा था। उन्हीं दिनों में मेने (अनिल कुमार सिन्हा ने ) बिना किसी भारी-भरकम पूँजी के कृषि व्यवसाय के क्षेत्र में कदम रखा था और आज उनकी कंपनी अंकिता ओवरसीज कृषि उद्योग के क्षेत्र में अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका के देशों में एक जाना-पहचाना नाम है।

 

 

वैसे तो उनके कारोबार की शुरुआत वर्ष 2000 के शुरुआती वर्षों हुई। पर उनकी कथा तो इससे पूर्व ही शुरू हो गई थी। बिहार के मुजफ्फरपुर शहर के एक छोटे से लड़के ने बिना किसी सहारे के अपने पैरों पर खड़े होने का फैसला किया था। वह भी अपनी उम्र के दूसरे लड़कों की तरह हर काम के लिए अपनी माता-पिता पर आश्रित रह सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि उनके अंदर अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भरता की एक कहानी लिखने का जूनून था। 10 वर्षीय उस छोटे लड़के ने मंदिरों में फूल बेचकर, खुद को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास आरंभ किया था। जब उनके स्कूल के साथी मैदान में क्रिकेट और फुटबॉल खेल रहे होते थे, उस वक्त वो मंदिर की भीड़ में अपने हाथों में फूल लिए घूम रहे होते थे ।अपने हाथों से लिफाफा बना रहे होते थे। कचहरी में स्टाम्प पेपर बेचना हो या फिर पान की दुकान पर बैठना हो, उस छोटी उम्र में ही उन्होंने ऐसे बहुत से काम किए जिनके कारण उन्हें कभी भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ा।

 

 

 

 

और सबसे बड़ी बात यह कि वह दूसरों की तरह उन मेहनत से कमाए हुए पैसों से चाट या चॉकलेट नहीं खाते थे बल्कि सड़कों पर बेसहारा दिखते लोगों की सहायता भी करते थे। हाईस्कूल तक पहुंचते-पहुंचते जब अनिल सिन्हा के मित्र दूसरों से ट्यूशन ले रहे थे, तब अनिल अपने से छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहे होते थे। संघर्ष के साथ उन्हीं गरीबी को भी करीब से देखने का उन्हे मौका मिला और उन्होंने उस खुशी को महसूस किया जो कि किसी जरूरतमंद की सहायता करने से हासिल होती है। अपने कमाए हुए पैसों से उन्होंने अपने शहर के एक रिक्शे वाले की बेटी की शादी में जनता घड़ी उपहार में देकर उस गरीब व्यक्ति की सहायता करने का प्रयास किया।

 

 

यह वह निर्णायक घड़ी थी जिसने उनके अंदर परोपकार की भावना को जगाया। संभवतः उस घड़ी को लेते समय उस रिक्शेवाले की आँखों में जो खुशी थी, उसी ने अनिल सिन्हा के दिल में जरूरतमंदों की सहायता करने का जज्बा भर दिया था, जो आज भी कायम है।

 

समाज में महिलाओं की स्थिति ने उन्हें हमेशा ही आहत किया है और इसी कारण वह महिला सशक्तिकरण के एक बड़े पैरोकार भी है। लड़कियों को तकनीकी शिक्षा देना उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के निरंतर प्रयास का ही हिस्सा है। अभी तक अपने प्रदेश बिहार की 180 से अधिक आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की लड़कियों का विवाह सम्पन्न करवाने में माहेश्वर लक्ष्मी मेमोरियल फाउंडेशन के माध्यम से सहयोग कर चुके हैं। उनके व्यवसाय में उनकी पत्नी डॉ. नमिता अनिल हमेशा से ही उनके साथ खड़ी रही हैं और अंकिता ओवरसीज का नाम उनकी पुत्री अंकिता अनिल के नाम पर ही है। कोविड काल में जब लॉकडाऊन के समय जब बिहार के अप्रवासी मजदूर दिल्ली में फंस गए थे तब चुपचाप लगभग पांच हजार मजदूरों के भोजन और उन्हें घर भेजने की अनिल जी ने व्यवस्था कराई थी।
छात्र जीवन में खुद को आत्मनिर्भर बनाया। बी.ए. में उन्होंने अपने विश्वविद्यालय में टॉप किया था। यह वह समय था जब उनके पास एम. ए. में नामांकन करवाने के भी पैसे नहीं थे।

 

 

 

तब उनके प्राध्यापकों ने आपस में मिलकर नामांकन के लिए पैसे इकट्ठे किए, जिसके कारण वे राजनीति शास्त्र में एम. ए. कर पाने में सफल हुए। बाद में उन्हें दक्षिण कोरिया विश्वविालय में मानद उपाधि से सम्मानित भी किया गया। नौकरी करने जब दिल्ली आए और लंबे समय तक नौकरी करते भी रहे । लेकिन उन्हें यह बात परेशान करती रही कि नौकरी करते हुए वह अपने सपनों को हकीकत में बदल नहीं सकते थे। अंततः उन्होंने अच्छी नौकरी को छोड़ दिया। अपने सपनों को पूरा करने को व्यापार जगत में आकर दिल्ली में दवा की कंपनी से शुरुआत की।

 

 

 

इस दवा कंपनी को चलाते हुए उन्हें देश के किसानों की बुरी स्थिति का एहसास हुआ। उन्हें महसूस हुआ कि दिन-रात कड़ी मेहनत के बाद भी किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिलता। उन्होंने भारतीय कृषि उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय पहुंच सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया और तंजानियां की यात्रा की। जल्द ही उन्हें कई भारतीय कृषि उत्पादों का निर्यात करने से संबंधित 5000 डॉलर का ऑर्डर मिला। इसके बाद, उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने चावल और लीची के निर्यात से कारोबार आरम्भ किया और अब उनकी कंपनी इन उत्पादों की लगभग 43 किस्मों का निर्यात कर रही हैं। वर्तमान में अंकिता ओवरसीज का वार्षिक टर्न ओवर 30 मिलियन डॉलर से अधिक का है लेकिन कम्पनी अभी ठहरी नहीं है। कंपनी भविष्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में जैविक उत्पादों के सबसे बड़े निर्यातक के तौर पर खुद को स्थापित करना चाहती है। अंकिता ओवरसीज और उसके मालिक अनिल कुमार सिन्हा के लिए अभी जिंदगी के इम्तहान और भी है। लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि इन व्यवसायिक उपलब्धियों के बीच भी उन्होंने समाज सेवा के अपने उस सपने को जिंदा रखा हुआ है और गरीब की मदद भी करते हैं।

 

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