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धर्मशहर

असजद मियां की सरपरस्ती में दरगाह पर मनाया गया यौम-ए-मुफ्ती-ए-आज़म हिन्द ।

 

मुफ्ती-ए-आज़म अपने वक़्त के मुत्तकी-ए-आज़म थे: मुफ्ती नश्तर फारुकी

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बरेली । दरगाह आला हज़रत स्थित दरगाह ताजुशारिया पर दरगाह के सज्जादानशीन एवं काज़ी-ए-हिंदुस्तान मुफ्ती मोहम्मद असजद रजा खां कादरी (असजद मियां) की सरपरस्ती और जमात रज़ा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सलमान मियां की सदारत व जमात रज़ा के राष्ट्रीय महासचिव फरमान मियां की देखरेख में मुफ्ती-ए-आज़म हिन्द का 133 वा यौम-ए-पैदाइश (जन्मदिन) का जश्न मनाया गया। महफ़िल का आगाज़ कादरी गुलाम नबी ने तिलावत-ए-कुरान से किया। नातख़्वा सैय्यद कैफ़ी अली व मौलाना गुलाम नबी ने नात-ओ-मनकबत का नज़राना पेश किया।
जमात रज़ा के प्रवक्ता समरान खान ने बताया कि महफ़िल का आगाज़ ईशा की नमाज़ बाद किया गया। इस मौके पर महफ़िल को ख़ुसूसी खिताब करते हुए मुफ्ती अब्दुर्रहीम नश्तर फारुकी ने मुफ्ती-ए-आज़म हिन्द को खिराज़ पेश करते हुए कहा कि मुफ्ती-ए-आज़म अपने वक़्त के मुत्तकी-ए-आज़म थे। आम तौर पर लोग तकरीर, तहरीर और तस्नीफ़ के ज़रिए दीन की तबलीग करते हैं लेकिन मुफ्ती-ए-आज़म हिंद अपने अमल से दीन की तबलीग व इशाअत का फ़रीजा अंजाम देते थे, दुनिया उनके इल्म व अमल, तक़्वा और फ़तवा का लोहा मानती थी, आप जो लिख देते वो हर्फ़ आख़िर होता, लोगों के लिए आपका नाम ही काफ़ी था। ऐसे वक़्त में मुफ्ती-ए-आज़म हिंद ने इश्के रसूल की बुनियाद पर इल्म की शमा रौशन करते हुए न केवल दीन के नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की बल्कि मुल्क की खिदमत करने में अहम रोल अदा किया। साथ ही हिदुस्तान ही नही बल्कि पूरे आलम की रहनुमाई फ़रमाई। फातिहा मौलाना अजीमुद्दीन अज़हरी व कारी काज़िम रज़ा ने और शिज़रा मुफ्ती अफजाल रज़वी ने पढ़ा। देश में अमन-ओ-अमान और भाईचारे के लिए ख़ुसूसी दुआ मौलाना शम्स ने की। हाफिज इकराम रज़ा खान, डॉक्टर मेहंदी हसन, शमीम अहमद, मोईन खान, अब्दुल्लाह रज़ा खान, मोईन अख्तर, बख्तियार खान व समरान खान ने सबको तबर्रूकात तकसीम किया ।

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