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ईश्वर की अनुभूति कराती है देवोत्थानी एकादशी

वर्ष की सभी चौबीस एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण हरि प्रबोधिनी यानी देवोत्थानी एकादशी 14 नवंबर रविवार को सूर्योदय के समय से ही प्रारंभ हो जाएगी अगले दिन सोमवार को सूर्योदय तक व्याप्त रहेगी। सनातन धर्म में इस एकादशी को खास स्थान प्राप्त है। पौराणिक कथाओं में भी  इस मोक्षदायिनी एकादशी का विस्तृत उल्लेख मिलता है। कथाओं के अनुसार कहा गया है कि जो मनोरथ का फल त्रिलोक में कहीं ना मिल सके वह हरि प्रबोधिनी एकादशी व्रत से प्राप्त किया जा सकता है। इस पर्व का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि, भगवान विष्णु आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष एकादशी को विश्राम के लिए क्षीर सागर में चले जाते हैं। चार महीने  विश्राम के बाद इस एकादशी को ही भगवान जागते हैं। चतुर्मास विश्राम के बाद  ऐसा प्रतीत होता है। कि यह पर्व ईश्वर की अनुभूति कराता है। कहते हैं कि इस एकादशी पर व्रत पूजन करने से कई अश्वमेध यज्ञ का फल  सुगमता से प्राप्त होता है। भगवान के विश्राम काल में शादी- विवाह मुंडन, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। और इस दिन जागने के साथ ही यह सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

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ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा
ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा 

ज्योतिष में इस पर्व को अनवूझा के साथ स्वयं सिद्धि मुहूर्त भी कहते हैं। जिसकी विवाह अगर अन्य तिथियों मे नहीं पड रहा हो, वह इस दिन बिना किसी पंडित के पूछे शादी कर सकते हैं। कोई भी कार्य का शुभारंभ इस दिन करने से संपन्नता रहती है। इस दिन तुलसी और विष्णु के पूजन के साथ ही यह कामना की जाती है कि, घर में आने वाले सभी मांगलिक कार्य संपन्न हो। तुलसी का पौधा क्योंकि पर्यावरण तथा प्रकृति का घोतक है। अतः तुलसी पूजन के साथ-साथ संदेश भी देती है कि औषधीय पौधे की तरह सभी हरियाली पौधों में स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रसार हो। इस दिन तुलसी पौधे का दान भी किया जाता है। इस दिन तुलसी शालिग्राम की पूजा पाठ सेअथाह ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे प्रबोधिनी और भगवान को जागने कारण इसे देवोत्थानी एकादशी कहते हैं।

तुलसी शालिग्राम का विवाह और पूजन का अध्यात्मिक वैज्ञानिक महत्व

अनेक व्रत और धर्म कथाओं में तुलसी का महत्व बताया गया है। भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की कोई भी पूजा तुलसी दल के बिना पूरी नहीं मानी जाती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि पर तुलसी विवाह किया जाता है। इस दिन तुलसी और शालिग्राम विवाह करवाने से हर तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। वहीं तुलसी विवाह से भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होते हैं। 
तुलसी एक नेचुरल एयर प्यूरिफायर है। ये पौधा 24 में से करीब 12 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है। वनस्पति वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड व सल्फर डाईऑक्साइड जैसी जहरीली गैस भी सोखता है। तुलसी का पौधा वायु प्रदूषण को कम करता है। तुलसी का पौधा उच्छवास में ओजोन वायु छोड़ता है जिससे सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाव होता है। 

इस तरह वायु प्रदूषण कम करने के लिये तुलसी का पौधा लगाना फायदेमंद है। वहीं धर्मग्रंथों के अनुसार देवोत्थानी एकादशी पर तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। तुलसी के पौधे का महत्व पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्त, स्कंद और भविष्य पुराण के साथ गरुड़ पुराण में भी बताया गया है। तुलसी का धार्मिक महत्‍व होने के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। यह पौधा शरीर की इम्‍यूनिटी बढ़ाने के साथ बैक्‍टीरिया और वायरल इंफेक्‍शन से भी लड़ता है।

संतान प्राप्ति -पाप नाशक -पुण्य वर्धक है यह व्रत

इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने से संतान हीनो को संतान की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। संतान की कामना रखने वालों को इस दिन संतान गोपाल मंत्र का जप, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए इस दिन भगवान के अभिषेक करने से उनका चरणोंदक पीने से जन्म जन्मांतर के पापों का नाश हो जाता है। यह व्रत इतना पुण्य वर्धक है। कहते हैं, मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से व्रत किया जाए तो सभी भौतिक सुख तो मिलते ही हैं साथ ही प्राणी विष्णु लोक यानी बैकुंठ का बासी भी हो जाता है।

ऐसे करें पूजन
इस दिन स्नान आदि से निवृत होकर धूप, दीप दिखाकर और शंखा घंटा बजाकर इस मंत्र से भगवान को जगाए।
“उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुड़ध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।
इसके बाद दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर भगवान को स्नान कराएं। पंचामृत आदि से स्नान कराकर वस्त्र, जनेऊ, रोली, चंदन, चावल, फूल माला, इत्र आदि से भगवान को अलंकृत करें इसके बाद भगवान को गन्ना, सिंघाड़ा, शकरकंद, अर्पित करें। एकादशी पर इन वस्तुओं को अर्पण का खासा महत्व  हैं। धन की प्राप्ति तीव्रता से होती है। अगर सामर्थ हो तो भगवान को छप्पन प्रकार के भोग अर्पण कर सकते हैं।

विशेष वस्तुओं को अर्पण कर पाए परमसुख
-भगवान विष्णु का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें ऐसा करने से मांगी हुई हर इच्छा पूर्ण होगी।
– इस दिन गंगा में स्नान करने के बाद अगर गायत्री मंत्र का जाप किया जाए तो स्वास्थ्य लाभ तीव्रता से होता है।
– धन वृद्धि के लिए इस दिन सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं, भोग में तुलसी के पत्ते जरूर डालें। 
– अटके हुए कार्य बनाने के लिए नारियल व थोड़े से बादाम चढ़ाएं।
– भगवान विष्णु की महिती कृपा प्राप्त करने के लिए पीले रंग के कपड़े ,पीले फल पीला अनाज,यहां तक कि केले का फल यह वस्तुएं  अर्पण करें और फिर गरीबों व जरूरतमंद को दान करें।
-देवउठनी एकादशी की शाम तुलसी के पौधे के सामने गाय के घी का दीपक लगाएं और ऊँ वासुदेवाय नम: मंत्र बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें। इस उपाय से घर में सुख-शांति बनी रहती है और किसी भी प्रकार का कोई संकट नहीं आता।
-किसी पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और पेड़ के नीचें शाम को दीपक लगाएं। पीपल में भी भगवान विष्णु का ही वास माना गया है। इस उपाय से जल्दी ही आप कर्ज से मुक्त हो सकते हैं।
– भगवान विष्णु की पूजा करे पूजा करते समय कुछ पैसे विष्णु भगवान की मूर्ति या तस्वीर के पास रख दें। पूजन करने के बाद यह पैसे फिर से अपने पर्स में रख लें। इससे धन लाभ होने की संभावना बन सकती है।

देवउठनी एकादशी तिथि: – 14 नवंबर  दिन रविवार

एकादशी तिथि प्रारंभ: – 14 नवंबर सुबह 05:48

एकादशी तिथि समापन: – 15 नवंबर सुबह 06:39, दिन सोमवार

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