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रमजान स्पेशल : समाज से गरीबी दूर करने ही के लिये इस्लाम ने जकात सिस्टम लागू किया  : मुफ्ती मुहम्मद सलीम 

 

 मोहम्मद आदिल

बरेली। रमज़ान का महीना अल्लाह का एक इनाम है जो उसने इस उममते मोहम्मदया का अता फरमाया।इस माहे मुकददस मे सुबहो शाम और हर समय अल्लाह की तरफ से रहमते और बरकते नाजिल होती रहती हैं।हर तरफ नुर और खुशहाली दिखाई देती है।हर तरफ नेकियों की बहार दिखाइ देती है।हर जगह दीनदारी और मजहबी फिजा की किरणें चमकती हैं।इस माहे मुकददस में रब तआला मोमिन और रोजे दार का रिज़क बढा देता है।जिन चीजों के खाने का एहतेमाम आदमी दुसरे दिनों में नही कर पाता मगर इन दिनों में कर लेता है।

बे शुमार लोगो की बखशिश इफ्तार, सहरी,तरावीह बल्कि हर घडी की जाती है।रोजे की जज़ा खुद रब तआला देता है या खुदाए तआला खुद रोजे की जज़ा और बदला बन जाता है।इस महीने की एक खासयत और विशेषता यह भी है कि इस महीने में नेक कामों का अजर और सवाब कई गुना बढा दिया जाता है।सुन्नत का सवाब फर्ज और फर्ज का सत्तर गुना कर दिया जाता है।एक विशेषता यह भी है कि इस महीने में रोजे दार जो कुछ खर्च करते हैं उसका हिसाब नही लिया जाएगा।इस माह मरने वाला मोमिन बे हिसाब जन्नत में जाएगा और उस से कब्र में नकीरैन के सुवालात और प्रश्न ना होंगे। रोजे दार को हर तरफ से रहमत और बरकत अपने घेरे में लिये रहती है।

इस लिये इस महीने का अभिनंदन और इसतिकबाल एक खास मेहमान और विशिष्ठ अतिथि की तरह करें।जियादा से जियादा समय मस्जिद में गुजारें और व्यतीत करें। कुरआन इसी महीने उतरा है इस लिये कुरआन खुब पढें। तफसीर पढें, उसके अनुवाद को समझ कर किसी आलिमे कुरआन से पढें।दुरुद शरीफ खुब पढें।अल्लाह के वलियों के मजारात पर जायें,वहां बैठ कर अल्लाह और रसुल का जिक्र करें। जुए,शराब,चोरी,झुंट,बुराई, गीबत आदि से बचें।नियाज, फातेहा खुब करें।गरीबो को फातेहा का खाना देकर उनकी मदद करें।मीलाद करायें।जिक्र की महफिलें सजायें, नमाजे तरावीह का खुब एहतेमाम करें।तफसीर की महफिलें भी सजाये।सदके और जकात से गरीबों की मदद करें।

पांच दस रुपए देने के बजाय  गरीब और मुसतहिकके जकात अपने करीबी रिश्तेदार को  इकठ्ठी जकात देकर उसे कोइ रोजगार,कारोबार करा दें या दुकान आदि दिला दें।किसी गरीब छात्र को फीस जमा करने के लिये दे दें कि पढ लिख कर बर सरे रोजगार हो जाये ।ताकि आइन्दा वह खुद दुसरे की मदद कर सके।समाज से गरीबी दुर करने ही के लिये इस्लाम ने जकात सिस्टम लागु किया है और यह तभी होगा जब आप हर साल अपनी जकात से हसबे हैसियत एक,दो,पाँच, दस बे रोजगारो को बर सरे रोजगार कर दे कि वह खुद जकात देने वाले बन जायंगे।वरना एक ,दो,पांच दस रुपये देकर रस्म अदा करने से फकीर बढेंगे, खत्म नही होगे।इस तरह भीख बांट कर हम और आप समाज में  भिखारी बढाने का काम कर रहे हैं। भिखारी और गरीबी खत्म करने का नही जबकि इस्लाम धर्म का मक़सद जकात सिस्टम से समाज से भिखारी, भीक प्रथा और गरीबी को दुर करना है।

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