बरेली।सेंथल की फिज़ा उस वक़्त रूहानियत और अकीदत से भर उठी जब “लब्बैक या हुसैन” की सदाओं के साथ 18 मोमिनीन का काफ़िला इमाम हुसैन (अ.स) की ज़ियारत के लिए रवाना हुआ। यह काफ़िला वल-फ़ज्र टूर
मजलिस में कर्बला की शहादत का ज़िक्र
रवानगी से पहले एक रूहानी मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें मौलाना नदीम अब्बास साहब ने इमाम हुसैन (अ.स) की शहादत, कर्बला की तहरीक और ज़ियारत की अहमियत पर रौशनी डाली। उन्होंने कहा कि कर्बला सिर्फ एक जंग नहीं, बल्कि इंसाफ़ और हक़ की बुनियाद है। मजलिस के दौरान उपस्थित मोमिनीन की आंखें नम थीं, और दिलों में इमाम (अ.स) के लिए बेपनाह मोहब्बत दिखाई दी।
रुख़्सतगी का जज़्बाती मंजर
जायरीन को विदा करने उनके अहबाब और रिश्तेदार फैज़ुल्ला मार्किट तक पहुंचे। रुख़्सत का यह लम्हा बेहद जज़्बाती था—जहां एक तरफ जुदाई की कसक थी, वहीं दूसरी तरफ हरम की ज़ियारत की बेताबी भी साफ़ झलक रही थी।
सुरक्षा और सहूलियत का मुकम्मल इंतज़ाम
वल-फ़ज्र टूर के ज़िम्मेदारों ने बताया कि काफ़िले के लिए सफर, ठहराव, तबर्रुक, गाइड और सुरक्षा से लेकर हर पहलू का बारीकी से इंतज़ाम किया गया है। जायरीन इस सफर में कर्बला में इमाम हुसैन (अ.स) और हज़रत अब्बास (अ.स), वहीं नजफ़ शरीफ़ में हज़रत अली (अ.स) के रौज़ों की ज़ियारत करेंगे।
दुआओं के साथ किया गया रुख़्सत
मकामी लोगों ने अपने इन मेहमान-ए-हरम को सलाम और दुआओं के साथ रुख़्सत किया। जाते-जाते सबसे यही गुज़ारिश की गई कि वे हरम की रौनक में तमाम मोमिनीन के लिए दुआ करना न भूलें।
