बरेली।भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर हालात तनावपूर्ण हैं। दोनों मुल्क एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं, और राजनैतिक बयानबाज़ी के बीच तल्ख़ियां दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं।
लेकिन इस सियासी और सैनिक रस्साकशी में सबसे ज्यादा पीड़ा उस आधी आबादी को हो रही है, जिनका जुड़ाव सरहद के दोनों ओर है — खासकर वे महिलाएं, जो शादी के बाद एक देश से दूसरे देश आईं, और अब हालात के मारे हुए अनचाहे सफर पर निकलने को मजबूर हैं।
सरकारों के फैसलों की सबसे बड़ी मार — औरतें झेल रही हैं
पहलगाम की घटना के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों के शॉर्ट टर्म वीजा पर रोक लगा दी। जवाब में पाकिस्तान ने भी भारतीय नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए। इसका सबसे दर्दनाक असर उन महिलाओं पर पड़ा जो भारत में अपने मायके आई थीं या पाकिस्तान से अपने ससुराल आई थीं। सीमा की सख्ती ने रिश्तों को तार-तार कर दिया।
बरेली की दो कहानियां, जो दिल को झकझोर दें
इरम की कहानी
इरम, पाकिस्तान की रहने वाली एक महिला, भारत में एक बेहतर भविष्य और खुशहाल जीवन की उम्मीद लेकर आई थी। विवाह के बाद कुछ वर्षों तक सब कुछ सामान्य चला, लेकिन निजी मतभेदों और हालात ने उसके रिश्ते को इस कदर तोड़ दिया कि वह बच्चों को भारत में छोड़ पाकिस्तान लौटने को मजबूर हो गई।
पहलगाम की घटना ने जैसे उसकी किस्मत की गिरह को और कस दिया। अब उसके लिए न बच्चों तक पहुँचना आसान है और न ही भारत लौट पाना। उसकी ममता दोनों देशों की राजनीति की भेंट चढ़ गई।
शहनाज की पीड़ा
बरेली की रहने वाली शहनाज का विवाह पाकिस्तान में हुआ था। वह कुछ समय के लिए अपने माता-पिता से मिलने भारत आई थी। लेकिन इसी दौरान उसका वीजा गुम हो गया और फिर पहलगाम की घटना के चलते हालात अचानक बदल गए। सरकारी आदेशों के चलते उसे अपने अपनों से मिले बिना ही वापस लौटना पड़ा। उसकी आंखों में बस एक ही सवाल था — क्या वह फिर कभी अपने वतन लौट पाएगी?
जब सरहदें रिश्तों से बड़ी हो जाएं
इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि जब दो देशों के रिश्ते बिगड़ते हैं तो सबसे ज्यादा चोट उन लोगों पर होती है जिनके दिल दोनों मुल्कों में बंटे होते हैं। वे महिलाएं, जो अपने जीवनसाथी के साथ एक नई दुनिया बसाने चली थीं, अब राजनीतिक फैसलों और कागज़ी पाबंदियों के बीच अपना अस्तित्व तलाश रही हैं।
यह ज़रूरी है कि दोनों देशों की सरकारें इस बात को समझें — इंसानी रिश्तों और खासकर स्त्रियों के अधिकारों पर जंग की राजनीति भारी नहीं पड़नी चाहिए।
क्या बोले मामले में मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी
हिंदुस्तान और पाकिस्तान के संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं। चाहे वो 1947 का बंटवारा हो, 1965 और 1971 की जंग हो या फिर कारगिल का संघर्ष—दोनों मुल्कों के बीच रिश्ते शायद ही कभी सामान्य रहे हों। कुछेक बार जैसे अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल में जब ‘दिल्ली-लाहौर बस सेवा’ शुरू हुई या फिर राजीव गांधी के दौर में कुछ कूटनीतिक प्रयास हुए, तब थोड़ी राहत महसूस हुई। लेकिन यह सुकून चंद पलों का ही रहा।
आज जब पहलगाम में हुई आतंकी घटना जैसी कायराना हरकत होती है, तो सिर्फ दोनों देशों की सरहदों पर ही तनाव नहीं होता—बल्कि लोगों के दिल और रिश्ते भी जख्मी हो जाते हैं। ऐसे माहौल में सबसे बड़ी तकलीफ उन्हें होती है जो इन रिश्तों के बीच जीते हैं — खासकर वे महिलाएं जो हिंदुस्तान से पाकिस्तान ब्याही जाती हैं या पाकिस्तान से हिंदुस्तान आती हैं।
जब हालात बिगड़ते हैं, तो सबसे पहले इन्हीं मासूम औरतों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। वे महिलाएं, जो सिर्फ अपने रिश्तों के लिए सरहद लांघती हैं, उन्हें जबरन अपने बच्चों से जुदा होना पड़ता है, अपनों से बिछड़ना पड़ता है। हाल ही में जो पाकिस्तानी महिलाएं भारत से अपने वतन लौट रही थीं, उनकी आँखों से बहते आँसू और बच्चों की चीखें इस दर्द की गवाही दे रही थीं। यही हाल पाकिस्तान में रहने वाली भारतीय बहुओं का भी है।
यह एक ऐसा मंजर है जिसे देखकर हर इंसान की आंखें भर आती हैं। सवाल ये नहीं कि गलती किसकी है—सवाल ये है कि आखिर इस दर्द का बोझ सिर्फ इन औरतों को ही क्यों उठाना पड़ता है?
इसलिए मैं दोनों मुल्कों के लोगों से, खासकर नौजवानों और उनके परिवारों से अपील करता हूँ—ख़ुदा के लिए, ऐसे रिश्तों से परहेज़ करें जिनमें सरहदें दीवार बन जाएं। अपने देश में रिश्ते तलाशें, ताकि हमारी बहन-बेटियों को इस तरह की जिल्लत और जुदाई से न गुजरना पड़े।
