लेख ।। संजीव मेहरोत्रा महामंत्री बरेली ट्रेड यूनियंस फेडरेशन
भगत सिंह आम लोगों की चेतना में आज भी जिंदा है,विगत कुछ वर्षों से शहीद ए आजम को याद करने का सिलसिला तेजी से शुरू हुआ है एक समय दुकानों,मेलो ट्रकों पर भगत सिंह की तस्वीरें देखी जाती थी वे उस समय जनता की चेतना के प्रमुख केंद्र हुआ करते थे भगत सिंह ने अपने समय में क्रांतिकारी चेतना पैदा की भगत सिंह ने 13 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया था और लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया था.
उन्होंने राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया था.8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड में मौजूद ब्रिटिश इंडिया की इमरजेंसी सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे.जो कम शक्ति के थे और ऐसे स्थान पर फेके गए जिससे कोई जन हानि न हो,यह उनकी सामाजिक और क्रांतिकारी सोच को दर्शाता है,7 अक्टूबर, 1930 को उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई थी और 23 मार्च, 1931 को लाहौर की सेंट्रल जेल में उन्हें फांसी दे दी गई थी.
भगत सिंह ने ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ का नारा दिया था. उन्होंने शोषण विहीन समाज का सपना देखा था.भगत सिंह ने कई युवाओं और नेताओं को देश की आज़ादी में सहयोग देने के लिए प्रेरित किया.भगत सिंह धर्म, संप्रदाय, जाति, हिंसा और गैर बराबरी के खिलाफ लड़ते रहे.
भगत सिंह के जीवन पर फ़िल्म भी बनी है जिसका नाम ‘द लीज़ेंड ऑफ़ भगत सिंह’ है. जो भगत सिंह के जीवन के हर पहलू पर नजर रखती हुई फिल्म है।
