15 जनवरी को होगा मकर संक्रांति का पुण्य काल
बरेली। भुवन भास्कर सूर्य देव को समर्पित और स्नान, दान -पुण्य का सबसे महत्वपूर्ण पर्व मकर सक्रांति इस बार 15 जनवरी रविवार को मनाई जाएगी। वैसे तो सूर्य देव 14 जनवरी को ही रात्रि 8:43 पर धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करेंगे। लेकिन, उदया तिथि की प्रधानतानुसार स्नान- दान- पुण्य, पूजा- पाठ का महत्व 15 जनवरी को होगा। सूर्य के राशि परिवर्तन को ही संक्रांति काल कहा जाता है। जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं। तो यह पर्व मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस पर्व का महत्व इसलिए अधिक होता है। क्योंकि, मकर राशि शनिदेव की राशि है और शनि देव सूर्य भगवान के पुत्र हैं। ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है और शनिदेव को न्यायाधीश। इसलिए पिता पुत्र के मिलन के पर्व का महत्व सर्वाधिक माना गया है। वैसे तो मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को ब्रह्म मुहूर्त से शाम तक रहेगा। लेकिन महा पुण्य काल प्रातः 7:17 से प्रातः 9:04 तक ही है यानी महा पुण्य काल की अवधि 1 घंटा 46 मिनट रहेगी।
विशेष मंगलकारी संयोगों की संक्रांति
ज्योतिष के अनुसार तुला राशि के चंद्रमा में मकर संक्रांति का पुण्य काल होगा। जिसे बहुत ही शुभ माना जा रहा है। इसके अलावा रविवार के दिन मकर संक्रांति का पडना बेहद शुभ संयोग है। क्योंकि, मकर संक्रांति सूर्य से जुड़ा पर्व है और रविवार सूर्य को समर्पित दिन है। इस दिन सूर्य, शनि और शुक्र ग्रह मकर राशि में विद्यमान रहेंगे। जिससे त्रिग्रही योग बन रहा है। साथ ही, चित्रा नक्षत्र,शश योग, सुकर्मा योग जैसे महासंयोग बन रहे हैं इन योगों में शुभ कार्य, दान- पुण्य, तीर्थ -यात्रा, पूजा -पाठ करने से हजारों गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं इन योगों में पूजा पाठ करने से कुंडली के समस्त ग्रह दोषों का निवारण भी सरलता से हो जाता है। और यश- वैभव, धन-संपदा की प्राप्ति का शुभारंभ हो जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। इसलिए इस पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता है। यह पर्व ऋतु परिवर्तन का सूचक माना गया है।जिससे वातावरण में बदलाव होना शुरू हो जाता है। सूर्य का बढ़ता तेज सर्दी को कम करने लग जाता है और गर्मी बढ़ती है। उसके बाद से फसलों के पकने के दिन भी शुरू हो जाते हैं। सूर्य के मकर में आने से खरमास में समाप्त हो जाते हैं और रुके हुए मांगलिक कार्य, विवाह, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, नवीन कार्य आदि का शुभारंभ भी हो जाता है। इस दिन खिचड़ी का दान और खिचड़ी का सेवन करना बहुत ही लाभप्रद है। इस पर्व को खिचड़ी का पर्व भी कहते हैं।
