भगवानस्वरुप राठौर
शीशगढ़। कस्बे के आस-पास कृषि के क्षेत्र में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है. किसान का अब गेहूं, धान, गन्ने आदि की पारंपरिक फसलों की जगह दूसरी फसलों की ओर रुख बढ़ता जा रहा है, जिसमें केले की खेती का चलन विशेष रूप से बढ़ रहा है। कस्बे के रहने वाले 45 वर्षीय किसान मो. ताहिर उर्फ गुड्डू ने बताया कि पहले वह धान, गेहूं, सरसों आदि की खेती करते थे. इसमें अधिक मुनाफा नहीं हो पाता था और लागत भी जादा लगती थी. फिर उन्होंने पारंपरिक फसलों को छोड़कर केले की खेती शुरू की जिससे वह अब सालाना लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. उन्होने केले की खेती अपने एक किसान मित्र की सलाह पर शुरु की थी।
मो. ताहिर ने बताया कि वे पिछले 6 सालों से केले की खेती कर रहे हैं और वर्तमान में जी -9 किस्म के केले की खेती कर रहे हैं जो 100 बीघे से अधिक जमीन पर फैला हुआ है. उन्होंने बताया कि जी-9 किस्म का केला अन्य किस्मों की तुलना में अधिक मीठा होता है और जल्दी पकता है व इसकी पैदावार भी जादा होती है। मो. ताहिर केले की खेती में देशी खाद का प्रयोग करते हैं।
मो. ताहिर बताते हैं कि केले की खेती में डेढ़ लाख रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से आती है व मुनाफा लगभग डेढ़ से ढ़ाई लाख रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से हो जाता है। उनकी पूरी फसल का केला आस- पास के क्षेत्र में ही बिक जाता है। उन्हे कहीं जादा दूर भाग- दौड़ करने की जरूरत नही पड़ती है। उनका कहना है कि बहेड़ी, रामपुर, मुरादाबाद आदि का व्यापारी आकार उनकी सारी फसल खरीदकर ले जाता है। उनके खेत के केले की क्वालिटी इतनी अच्छी है कि व्यापारी खुद खेत पर ही आकर उनसे केले की खरीदारी करते हैं।
मो. ताहिर केले की फसल की सिंचाई ड्रिप इर्रीगेशन के जरिए करते हैं. इसका उन्हें फायदा मिला और अच्छी उपज हुई. उनकी माने तो एक केले के गुच्छे का वजन लगभग 50 से 55 किलोग्राम तक होता है. यही वजह है कि उन्हें एक एकड़ में 400 से 450 कुंतल केले का उत्पादन मिल जाता है। उन्होने बताया कि उधान विभाग से अगर उन्हे अनुदान मिल जाए तो वे अपनी केले की खेती को और बढ़ा दें परंतु उधान विभाग से उन्हे अनुदान नही मिलता है।इस बावत जानकारी करने पर जिला उधान अधिकारी जितेंद्र कुमार ने बताया कि उन्हे अनुदान देने के बारे में कोई जानकारी नही है। जानकारी करके बता दिया जाएगा।
