बरेली। आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ फाज़िले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह का 107वां उर्स-ए-रज़वी
दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खाँ (सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती और सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) की सदारत में आयोजित इस ऐतिहासिक महफ़िल का आगाज़ कुरान की तिलावत से हुआ। मिलाद और नात-मनकबत के बाद विभिन्न मुल्कों से आए उलेमा-ए-किराम ने आलाहज़रत की शिक्षाओं को दुनिया तक पहुंचाने और सूफी-सुन्नी विचारधारा से विश्व में अमन-ओ-सुकून कायम करने का पैगाम दिया।
मिस्र, तुर्की, शाम, जॉर्डन, अफ्रीका और अमेरिका से आए विद्वानों ने कहा कि “मसलक-ए-आलाहज़रत ही मसलक-ए-अहले सुन्नत है और यही पैगंबर ए इस्लाम का मिशन और तालीमात है।” मुफ्ती सलमान अजहरी ने जायरीन को सम्बोधित करते हुए कहा कि हर मुसलमान अपनी दीवानगी को तालीमात-ए-आलाहज़रत के अनुसार अमल में लाए और इस मिशन को पूरी दुनिया तक पहुंचाए।
मुफ्ती सलीम नूरी बरेलवी ने अपने खिताब में कहा कि मौजूदा दौर में सूफी सुन्नी खानकाही विचारधारा ही विश्व में शांति स्थापित करने का सबसे मजबूत जरिया है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान एक खूबसूरत गुलदस्ता है जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी रंग-बिरंगे फूल हैं। इस देश में नफरत की कोई जगह नहीं है और आलाहज़रत का परिवार हमेशा मुल्क से वफादारी और अंग्रेजों से नफरत का पैगाम देता आया है।
महफिल में उलेमा-ए-किराम ने मुस्लिम समाज से बेटियों की बेहतर परवरिश, शादियों में फिजूलखर्ची से परहेज, और धार्मिक जुलूसों में डीजे पर पाबंदी लगाने की अपील की। मॉरीशस से आए मुफ्ती नदीम अख्तर ने आलाहज़रत की तहरीरी खिदमात का ज़िक्र करते हुए कहा कि “जैसे 500 उलेमा ने मिलकर फतावा आलमगीरी तैयार किया, वैसे ही इमाम अहमद रज़ा खाँ ने अकेले 12 जिल्दों में फतावा रज़विया लिखकर पूरी दुनिया के लिए शरीयत के मसाइल हल कर दिए।”
समापन पर मुफ्ती अहसन मियां ने मुल्क ए हिंदुस्तान में अमन-ओ-सुकून, मिल्लत की भलाई और फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए खुसूसी दुआ की। वहीं, हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खाँ (सुब्हानी मियां) ने हजारों जायरीन को मुरीद बनाकर सिलसिला-ए-रज़विया में शामिल किया।
उर्स के बेहतर इंतज़ामात के लिए दरगाह प्रशासन, जिला व पुलिस प्रशासन, मीडिया और सभी लंगर कमेटियों का शुक्रिया अदा किया गया। इस बार जायरीन को लंगर के साथ-साथ बाहर से आई फोर्स और मेहमानों के लिए मरकज ऐड सेल की ओर से तीनों दिन जलपान की विशेष व्यवस्था भी की गई।
इस अवसर पर देश-विदेश के नामचीन उलेमा, सज्जादानशीन और खानदान-ए-आलाहज़रत की बड़ी तादाद मौजूद रही। लाखों जायरीन की दुआओं और नातिया कलाम के बीच जब कुल शरीफ की रस्म अदा हुई तो पूरा मंजर रूहानी नूर से जगमगा उठा।
