बरेली शरीफ।
डीजे और शोर-शराबे को लेकर साफ संदेश
बैठक में तौसीफ़ मियां ने स्पष्ट रूप से कहा कि,
“डीजे और ग़ैर शरई चीज़ें उर्से रज़वी जैसे पाक मौके पर न तो स्वीकार की जाएंगी और न ही बर्दाश्त।”
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि कुछ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि कुछ लोग चादर या डलियों के साथ डीजे बजाते हुए दरगाह पहुंचते हैं, जो न सिर्फ शरीअत के ख़िलाफ़ है बल्कि बीमारों और बुज़ुर्गों के लिए तकलीफदेह भी है। ऐसे जुलूसों को दरगाह परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी।
दरूद और नाते पाक से हो जुलूस की रौनक
तौसीफ़ मियां ने अपील की कि चादर या फूलों की डलियाँ लेकर आने वाले सभी अकीदतमंद दरूद शरीफ़ और नाते पाक पढ़ते हुए शांति और अनुशासन के साथ चलें। इस्लाम की पहचान अखलाक (शालीनता और संयम) है, न कि शोरगुल और गानों के माध्यम से दिखावा।
नबी के 1500 साला जश्न की खास तैयारी
इस वर्ष हमारे नबी का 1500वां साल है, जिसे जश्ने मीलादे मुस्तफा के रूप में भव्य और गरिमापूर्ण तरीके से मनाया जाएगा। तौसीफ़ मियां ने कहा कि हर आशिके रसूल अभी से तैयारियों में जुट जाएं और अपने नबी की सीरत (जीवन चरित्र) को हिंदी, अंग्रेज़ी और उर्दू में हैंडबिलों के माध्यम से प्रचारित करें।
ग़ैर शरई खर्च की जगह करें सेवा कार्य
उन्होंने एक अहम संदेश देते हुए कहा,
“डीजे और बैंडबाजे पर जो पैसा खर्च होता है, वह गरीबों की मदद और ज़रूरतमंद लड़कियों की शादी पर खर्च करें, यही असल सुन्नत और नबी से सच्ची मोहब्बत है।”
रज़ाकारों को किया गया प्रशिक्षित
सैयद आमिर मियां, दामादे तौसीफ मिल्लत ने सभी रज़ाकारों को मेहमानों की सेवा और व्यवहार संबंधी प्रशिक्षण दिया, ताकि किसी भी अतिथि को कोई असुविधा न हो। बैठक में मीडिया प्रभारी ज़िया उर रहमान, मौलाना सरताज, मुफ़्ती शायान, शाहिद रज़ा, सैयद शहरोज, मुफ़्ती नवाज़िश, मौलाना इरशाद, सद्दाम, इमरान, समाजसेवी पम्मी ख़ाँ वारसी समेत कई अकीदतमंद शामिल रहे।
