संजीव मेहरोत्रा, पूर्व बैंककर्मी
बरेली। देश की महंगाई दर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, जून में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति दर घटकर महज 2.1% पर पहुंच गई है, जो 77 महीनों का निचला स्तर है। यह दर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के निर्धारित 4% लक्ष्य से भी काफी नीचे है।
इस आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए SBI ने सुझाव दिया है कि RBI को अपनी आगामी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो रेट में कम से कम 25 आधार अंकों की कटौती करनी चाहिए। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि RBI ने इस अवसर पर त्वरित निर्णय नहीं लिया, तो यह एक “महंगी चूक” साबित हो सकती है, जो आर्थिक सुधार की गति को धीमा कर सकती है।
रेपो रेट में कटौती से विकास को गति
SBI का मानना है कि ब्याज दरों में कटौती से:
ऋण लेने की लागत घटेगी, जिससे उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए कर्ज लेना आसान होगा,
खपत और निवेश में इज़ाफा होगा,
और अंततः आर्थिक विकास को नई ऊर्जा मिलेगी।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि CPI की नई गणना प्रणाली में ई-कॉमर्स वस्तुओं का भार बढ़ा दिया गया है, जबकि खाने-पीने की चीज़ों का अनुपात घटाया गया है। इस वजह से भी आने वाले महीनों में महंगाई दर कम रहने की संभावना जताई गई है।
RBI की भूमिका पर उठे सवाल
भारतीय रिज़र्व बैंक का मुख्य उद्देश्य कीमतों में स्थिरता बनाए रखते हुए आर्थिक विकास को समर्थन देना है। SBI की रिपोर्ट में कहा गया है कि अब वक्त है जब RBI को समय पर हस्तक्षेप कर अपनी भूमिका को सार्थक बनाना चाहिए। यदि रेपो रेट में कटौती होती है, तो यह बाज़ारों के लिए किसी “जल्दी दिवाली” से कम नहीं होगा। इससे बैंक लोन सस्ते होंगे और आम लोगों को राहत मिलेगी।
नजरें अगली नीति बैठक पर
अब सभी की निगाहें अगस्त में होने वाली RBI की मौद्रिक नीति समिति बैठक पर टिकी हैं। क्या रिज़र्व बैंक SBI की सलाह को मानेगा और आर्थिक रफ्तार को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों में कटौती करेगा? यह फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
