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सावन के आखिरी सोमवार को नाथ नगरी में सुरक्षा के रहेंगे कड़े बंदोबस्त , लाखों की संख्या में पहुंचेगे गांव देहातों से शिवभक्त

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बरेली ;  सावन के आखिरी सोमवार और मोहर्रम के लिए प्रशासन की तैयारियां अंतिम चरणों में है।  प्रशासन ने  शहर के सभी नाथ मंदिरों के सुरक्षा के खास इंतजाम किये है।  सभी मंदिरों के द्वार पर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए है।  प्रशासन के आलाधिकारी अपने दफ्तरों में बैठकर भी वर्चुअल मंदिरो के साथ शहर के महत्वपूर्ण स्थलों से जुड़े हुए है।  बताया जा रहा है कि सावन के आखिरी सोमवार को शहर के अंदर 10 लाख शिवभक्तों के पहुंचने की उम्म्मीद है।  कुछ जानकार यह भी बता रहे है हरिद्वार , बदायूं सहित अन्य जगहों से कांवड़ लेकर पहुंचने वाले बाबा के भक्त  शनिवार देरशाम या फिर रविवार को ही नाथ मंदिरों में पहुंचने लगेंगे। हालांकि इन बातों में एक बात यह भी महत्वपूर्ण है शहर तक पहुंचने के लिए कांवड़ियों को देहात क्षेत्र के कई मार्गो से गुजकर अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचना है।  ऐसे में  देहात क्षेत्र सम्बन्ध रखने वाले पुलिस अधिकारियों की खास जिम्मेदारी रहेगी क्यूंकि हाल में कांवड़ के दौरान छोटे -छोटे  सड़क हादसे भी हुए है।
जानिए बरेली के नाथ मंदिरों के बारे में ,

शहर की चारों दिशाओं में बाबा भोलेनाथ के मंदिर है । भगवान शिव के यह सात मंदिर पौराणिक महत्व के हैं। हर मंदिर के पीछे एक  कहानी है। सैकड़ों साल पहले से आज तक, इन मंदिरों हर शिवभक्त की आस्था जुड़ी है। सावन माह  कांवड़िये  हरिद्वार और कछला से गंगा जल लाकर इन मंदिरों के शिवालय में चढ़ाते है ।

बनखंडीनाथ मंदिर:  बनखंडी नाथ  मंदिर पुराने शहर में है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि पांचाल राज्य की  महारानी द्रोपदी ने पूर्व दिशा में अपने गुरु के आदेश पर शिवलिंग स्थापित कर कठोर तप किया था। श्रावण मास में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है।

मढ़ीनाथ-   शहर के पश्चिम दिशा में  मढ़ीनाथ का मंदिर है । यहां के बारे में कहा जाता है कि एक तपस्वी ने राहगीरों की प्यास बुझाने के लिए यहां कुआं खोदना शुरू किया था तभी शिवलिंग प्रकट हुआ। ऐसा शिवलिंग जिस पर मढ़ीधारी सर्प लिपटा था। जिसके बाद यहां मंदिर स्थापना हुई , जिसे आज लोग  मढ़ीनाथ मंदिर के नाम से जानते है ।

त्रिबटीनाथ: उत्तर दिशा में यह बना मंदिर प्राचीनकाल में वन में स्थित था । इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि चरवाह तीन वट वृक्षों के नीचे विश्राम कर रहा था। उस वक्त स्वप्न में भोलेनाथ आए और उस स्थान की खुदाई करने को कहा। त्रिवट के नीचे खोदाई की तो शिवलिंग प्रकट हुआ। तीन वटों के नीचे शिवलिंग मिलने से इस मंदिर का नाम त्रिवटी नाथ पड़ गया।

तपेश्पर नाथ: शहर के दक्षिण दिशा में स्थित यह मंदिर ऋषियों की तपोस्थली रहा। उन्होंने कठोर तप कर इस देवालय को सिद्ध किया इसलिए नाम तपेश्वरनाथ मंदिर पड़ा।

धोपेश्वर नाथ: पूर्व दक्षिण अग्निकोण में स्थापित  धोपेश्वर मंदिर को महाराजा दु्रपद के गुरु एवं अत्री ऋषि को शिष्य धू्रम ऋषि ने कठोर तप से सिद्ध किया। उन्हीं के नाम पर देवालय का नाम धूमेश्वर नाथ पड़ा जोकि बाद में धोपेश्वर नाथ के नाम से जाना जाने लगा।इस मंदिर के प्रति लोगों  में विशेष आस्था देखने को मिलती है।

अलखनाथ: आनंद अखाड़ा के अलखिया बाबा ने किला थाना क्षेत्र की नदी के पास  कठोर तप किया था । शिवभक्तों के लिए यहां अलख जगाई। उन्हीं के नाम से जोड़कर इस मंदिर का नाम अलखनाथ पड़ा।यहां के बारे में भी कहा जाता है

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