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भैया दूज पर मिलेगा आयुष्मान और बढ़ेगा सौभाग्य,

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भाई बहन के प्रेम- बंधन को मजबूत करता है भैया दूज,

 

भैया दूज भाई-बहन के बीच सद्भावना और प्रेम को प्रोत्साहित करने का मुख्य पर्व है। यह पर्व कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। भैया दूज दिवाली की पंच दीपोत्सव का अंतिम दिन होता है। यह त्यौहार दिवाली के दो दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि में मनाया जाता है। 27 अक्टूबर को मध्यान्ह 12:44 तक द्वितीय तिथि व्याप्त रहेगी। उदया तिथि की प्रधानता के अनुसार यह पर्व धूमधाम से गुरुवार में मनाया जाएगा। और इस दिन भगवान चित्रगुप्त की भी पूजा का विधान है। कलम- दवात की भी पूजा भैया दूज के दिन की जाती है। इस साल तो भैया दूज पर अत्यंत मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। क्योंकि इस दिन आयुष्मान योग और सौभाग्य योग का संगम रहेगा। इन सुयोगों के कारण भाई-बहन में अपार प्रेम की वृद्धि होगी।

 

 

 

यह योग भाई-बहन के रिश्तो में आयुष्मान लाएंगे और सौभाग्य में वृद्धि होगी। बही भगवान का भी आशीर्वाद खूब बरसेगा। भारत के उत्तर और मध्य क्षेत्र में तो इसे भैया दूज या भाई दौज कहा जाता है, किंतु पूर्वी भारत में इसे भाई-कोटा, पश्चिम में भाईबीज और भाऊबीज भी कहा जाता है।भाई बहन का रिश्ता दुनिया का सबसे मजबूत और प्यारा रिश्ता है। और रक्षाबंधन और भाई दूज जैसे त्यौहार भाई बहन के रिश्ते को और मजबूत बनाते हैं। भाई-बहन के बीच छोटी मोटी नोकझोंक भी होती रहती है। लेकिन भाई दूज के दिन इंसानी नोकझोंक को भूल कर भाई बहन आपस में बड़े प्यार के साथ भाई दूज का त्यौहार मनाते हैं।इस त्यौहार के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं हैं।

 

ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा

 

 

मुख्य रूप से मान्यता है कि सूर्यदेव की पत्नी छाया ने यम और यमुना नाम के पुत्र और पुत्री को जन्म दिया था। अपने विवाह के पश्चात यमुना अपने भाई यमराज को अपने घर भोजन के लिए बुला रही थी लेकिन अपने कार्य में व्यस्त होने के कारण जा नहीं पा रहे थे।एक दिन यमराज ने सोचा कि कोई भी गलती से भी मुझे अपने घर नहीं बुलाता है लेकिन मेरी बहन इतने प्रेम से मुझे इतने दिनों से बुला रही है। मुझे अवश्य जाना चाहिए और यमराज अपने बहन यमुना के घर गए। भाई को देख कर यमुना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यमुना सबसे पहले यमुना में स्नान किया और अपने भाई का तिलक किया।

 

 

 

यमुना ने अपने भाई को भोजन में तरह तरह का पकवान परोसा। यमुना के प्रेम भाव से बहुत खुश हुए और यह वरदान दिया कि आज के दिन जो बहन यमुना में स्नान करके अपने भाई को तिलक लगाने के बाद अच्छे अच्छे भोजन करायेगी तो उसे और उसके भाई को यमराज का भय नहीं होगा। इसीलिए तभी से ये त्योहार मनाया जाने लगा। बरस में भैया दूज रक्षाबंधन दो त्योहार ऐसे आते हैं जिसमें भाई बहन का मिलन होता है। भैया दूज के मिलन के इस पर्व पर एक दूसरे के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम उमड़ पड़ता है। बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक कर मिठाई खिलाती है और गोला, मिठाई आदि भाई को अर्पण करती है। और बदले में भाई भी बहन को सामर्थ्य के अनुसार खूब उपहार देते हैं। मान्यताओं के अनुसार भाई के मस्तक पर बहन के द्वारा लगाया हुआ तिलक भाई की आयु में यश- धन संपदा में वृद्धि करता है और मृत्यु भय से मुक्त होता है।

 

 

 

भगवान चित्रगुप्त कलम दवाद की पूजा का भी होता है महत्त्व
भगवान चित्रगुप्त यमपुरी के देवता है। मनुष्य के कर्मों की लेखा-जोखा इन्हीं के पास रहता है। उसी लेखा-जोखा के हिसाब से मनुष्य को कर्मों का दंड मिलता है।भगवान चित्रगुप्त मुख्य रूप से लेखा-जोखा रखने का कार्य करते हैं। इसलिए इनका मुख्य कार्य लेखनी से जोड़कर देखा जाता है। यही वजह है कि भाई दूज के दिन चित्रगुप्त जी के प्रतिरूप के तौर पर कलम का पूजन भी किया जाता है। माना जाता है कि भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने से बुद्धि, वाणी और लेखनी का आशीर्वाद मिलता है। बता दें कि कायस्थ कुल के लोगों को भगवान चित्रगुप्त का वंशज माना जाता है। इसी वजह से कायस्थ परिवार के लोग भगवान चित्रगुप्त जी का पूजन और उनके साथ कलम का पूजन इस दिन विशेष रूप से करते हैं।

 

 

भाई दूज पूजा विधि
– भाई दूज पर शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए बहनें भाई के तिलक करने और आरती के लिए पूजा की थाल तैयारशश करती हैं।
– पूजा की थाल में कुमकुम,अक्षत, चंदन, जल, मिठाई, फल और फूल आदि सामग्री की जरूरत होती है।
– भाई के माथे पर तिलक करने के लिए पूर्व दिशा में भाई को चौकी पर बैठाया जाता है।
– इसके बाद भाई के सिर पर कपड़े का टुकड़ा रखते हुए शुभ मुहूर्त में बहनें तिलक करें।
– तिलक लगाने के बाद भाई को मिठाई खिलाएं और आरती उतारें।
– आरती और तिलक के बाद भाई बहनों को उपहार में कुछ चीजें भेंट करें और हमेशा रक्षा करने का वचन दें।
नोट- राहुकाल मध्यान्ह 1:20 से 2:43 तक रहेगा इस दौरान भैया दूज का पर्व ना मनाए।

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