बरेली। मुहर्रम का महीना इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होने के साथ-साथ सब्र, क़ुर्बानी और हक़ की राह पर डटे रहने का पैग़ाम देता है। इसी भावना को ज़ाहिर करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता ज़ैनब फ़ातिमा ने कहा कि मुहर्रम हमें सिखाता है कि हक़ और इंसाफ़ के लिए जद्दोजहद करनी चाहिए, चाहे इसके लिए कितनी भी बड़ी क़ुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
उन्होंने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन रज़ि० ने कर्बला के मैदान में यज़ीद की ज़ालिम हुकूमत के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हुए अपनी जान की कुर्बानी दी, लेकिन झूठ और ज़ुल्म के आगे सिर नहीं झुकाया। दस मुहर्रम को इब्ने ज़्याद के सरदार शिमर के हाथों इमाम हुसैन रज़ि० शहीद हुए। मुहर्रम इसी ऐतिहासिक संघर्ष और क़ुर्बानी की याद में मनाया जाता है।
ज़ैनब फ़ातिमा ने कहा कि यह महीना हमें सच्चाई, ईमानदारी और सब्र का सबक देता है। मुहर्रम के दिन हमें याद दिलाते हैं कि जब भी ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की बात हो, तो हमें अपने अकीदे और ईमान की हिफाज़त करते हुए इंसाफ़ की राह पर चलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आज के दौर में भी मुहर्रम का पैग़ाम बहुत अहम है। यह हमें आपसी मोहब्बत, भाईचारे और इंसानियत को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। हमें चाहिए कि हम इमाम हुसैन रज़ि० की कुर्बानी से सीख लेकर अपनी ज़िन्दगी को इस्लामी हिदायतों के मुताबिक गुज़ारें और हर हाल में हक़ का साथ दें।
