रक्त कैंसर के खिलाफ CAR T-सेल थेरेपी से बेहतर परिणाम

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सौजन्य ।। max hospital

बरेली: लिंफोमा रक्त कैंसर का एक प्रकार है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली यानी लिंफैटिक सिस्टम को प्रभावित करता है। यह तब होता है जब लिंफोसाइट्स, (एक प्रकार की वाइट ब्लड सेल), अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं और लिम्फ नोड या शरीर के अन्य भागों में ट्यूमर का निर्माण करती हैं। चिकित्सा अनुसंधान में प्रगति के साथ, प्रारंभिक पहचान और विशेष उपचार से इस रोग को हराना और लंबे समय तक नियंत्रण में रखना संभव है।

 

 

लिंफोमा को दो प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। हॉजकिन लिंफोमा में रीड-स्ट्रेनबर्ग कोशिकाएं पाई जाती हैं, जो असामान्य प्रकार की लिंफोसाइट्स होती हैं। यह आमतौर पर छाती, गर्दन या कांख में विकसित होता है और कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी तथा इम्यूनोथेरेपी के जरिए प्रभावी ढंग से इलाज संभव है। वहीं, नॉन-हॉजकिन लिंफोमा बी-कोशिकाओं या टी-कोशिकाओं को प्रभावित करता है और इसका स्वरूप तथा उपचार की प्रक्रिया भिन्न-भिन्न हो सकती है। इस प्रकार के लिंफोमा का उपचार कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी, रेडियोथेरेपी और स्टेम सेल प्रत्यारोपण के संयोजन से किया जाता है।

 

 

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत में कैंसर केयर/ऑन्कोलॉजी, बोन मैरो ट्रांसप्लांट के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर रयाज़ अहमद ने बताया “लिंफोमा का इलाज आधुनिक और पारंपरिक उपचार विधियों का सम्मिश्रण है। कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी तेजी से बढ़ती कैंसर कोशिकाओं को खत्म करती हैं। टार्गेटेड थेरेपी केवल कैंसर कोशिकाओं को निशाना बनाती हैं, जबकि इम्यूनोथेरेपी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है। स्टेम सेल प्रत्यारोपण क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को स्वस्थ कोशिकाओं से बदलने में सहायक होता है। इसके अलावा, क्लिनिकल ट्रायल के जरिए उन्नत और नई उपचार पद्धतियों का लाभ लिया जा सकता है।

 

 

CAR T-सेल थेरेपी लिंफोमा के उपचार में एक नवीन पद्धति है, जिसमें रोगी की टी-कोशिकाओं को इस तरह संशोधित किया जाता है कि वे लिंफोमा कोशिकाओं को पहचानकर नष्ट कर सकें। यह उपचार उन रोगियों के लिए विशेष रूप से प्रभावी है, जिनमें पारंपरिक इलाज के बाद कैंसर दोबारा उभर आता है। यह थेरेपी अन्य उपचारों के साथ मिलकर और भी बेहतर परिणाम देती है।“
लिंफोमा के लक्षण अक्सर अन्य बीमारियों के जैसे होते हैं, जिससे इसे पहचानना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके सामान्य लक्षणों में गर्दन, कांख या कमर में लसीका ग्रंथियों का सूजना, लगातार थकान, बुखार, रात में पसीना आना, बिना वजह वजन घटाना, त्वचा में खुजली या रैश और सांस लेने में कठिनाई या सीने में दर्द शामिल हैं। यदि आप इन लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं, तो तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेना जरूरी है।

 

लिंफोमा का समय पर पता लगने और सही उपचार कराने के कई लाभ हैं। इससे रोगियों की जीवित रहने की संभावना बढ़ती है, और उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार होता है। उन्नत निदान विधियां व्यक्तिगत उपचार योजनाएं बनाने में मदद करती हैं, जिससे रोगी को बेहतर परिणाम मिलते हैं।

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Author: newsvoxindia

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