चतुर्थी को चांद देखने से लगता है कलंक !

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बरेली।गणेश महोत्सव का पावन पर्व देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है दरअसल पौराणिक मान्यता के अनुसार भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में भगवान गणेश का अवतार हुआ था इसलिए चतुर्थी तिथि में भगवान गणेश की स्थापना कर उनकी पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है। यह महोत्सव दस दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 31 अगस्त से शुरू होकर 9 सितंबर तक चलेगा अनंत चतुर्दशी को भगवान गणेश की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।

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पंडित मुकेश मिश्रा

गणेश विसर्जन का पौराणिक महत्व
धर्म ग्रंथ अनुसार वेदव्यासजी ने गणेश चतुर्थी से ही भगवान् गणेश को महाभारत महाकाव्य की कथा लगातार दस दिनों तक सुनाई थी। जिसे गणेशजी ने अक्षरश: लिखा था। दस दिनों बाद वेद व्यास ने जब अपनी आँखे खोली तो उन्होंने देखा की दस दिनों की मेहनत से भगवान् गणेश का शरीर का तापमान काफी बढ़ गया है। वेद व्यासजी नज़दीक के सरोवर में लेजाकर उनको शीतल जल से उनको ठंडा करते है। इसलिए स्थापना के बाद दशमी दिन भगवान गणेश का जल, सरोवर, नदियों में विसर्जन किया जाता है।

 

चतुर्थी को चंद्रमा देखना पूर्णतया निषेध
धर्म शास्त्रों के अनुसार गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते हैं भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी के दिन आकाश में चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए इस दिन चंद्रमा देखने से कलंक लगता है कहा जाता है यदि कोई व्यक्ति गणेश चतुर्थी को चंद्रमा को देखता है तो उस पर चोरी का चोरी का आरोप लगता है और समाज में उसका अपमान होता है भगवान गणेश को चतुर्थी के दिन चंद्रमा को श्राप दिया था।इसलिए इस चतुर्थी को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।

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Author: newsvoxindia

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