धर्म ही जीवन का मार्गदर्शक , धर्म ही अलगाव को कर सकता है दूर

SHARE:

रामेंद्र प्रसाद गुप्ता,राष्ट्रीय संरक्षक
अखिल भारतीय माहौर वैश्य महासभा,

Advertisement

आदमी अपने अस्तित्व के बाद सबसे पहले धर्म को ही ढूंढते हैं। ढूंढना इसलिए पड़ रहा है क्योंकि अब धर्म के ऊपर संप्रदाय के इतने आवरण चढ़ा दिए गए हैं कि धर्म भी खुद को नहीं पहचान पा रहा है कि वह कौन है और उसका वास्तविक स्वरूप क्या है।अब चुकि हम धर्म का अर्थ ढूंढने निकले हैं तो सबसे पहले महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद की वह घटना याद आती है जब युधिष्ठिर भीष्म से ज्ञान लेने आते हैं और पूछते हैं कि, धर्म क्या है? भीष्म साफ शब्दों में समझते हैं: धारणात् धर्म यानी जो धारण करता है, एकत्र करता है, अलगाव को दूर करता है, वह ‘‘धर्म’’ हैं। इसे साफ अर्थो में जानें तो जो मानव को, मानवता को, समाज को और राष्ट्र को आपस में जोड़े वही धर्म है। जो मनुष्य को अधोगति में जाने से बचाए वही धर्म। इसके विपरीत जो भी है वह धर्म नही है यानी जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से लड़ाए वह अधर्म है। महर्षि व्यास ने पुराणों का सार बताते हुए नारद से कहा है ‘परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्।’ यानी दूसरों की सहायता करना पुण्य है, धर्म है और किसी भी प्राणी को सताना, कष्ट पहुंचाना पाप यानी अधर्म है।लेकिन धर्म को इन परिभाषाओं में बांधकर नहीं रखा जा सकता है। वास्तव में धर्म इससे कहीं व्यापक है। धर्म एक मार्गदर्शक है, गुरू है, अंधे की आंख, कमजोर की लाठी, ताकवर का डर और ज्ञानियों का ज्ञान है जो उन्हें सही राह पर चलना सीखता है। जिस मनुष्य को सही राह पर चलना आ गया है वास्तव में उनके लिए तो किसी धर्म की जरूरत ही नहीं है।मनुष्य के लिए धर्म की जरूरत इसलिए है कि मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक अहंकार, लोभ, अभिमान और मोह के बंधन में बंधा रहता है। इसलिए मनुष्य में मनुष्यता को बनाए रखने के लिए धर्म की आवशयकता है। धर्म के नहीं होने पर मनुष्य आसमान में भटकते दिशाहीन बादलो की तरह नष्ट हो जाएगा। मनुष्य को नष्ट होने से बचाने के लिए ही धर्म की आवशयकता है। भीष्म ने धर्म को धारण करने वाला बताया है इस एक शब्द से भी मुनष्य के लिए धर्म की आवश्यकता को समझा जा सकता है। धारण करने से अर्थ है अपने में समेट लेना जैसे आप वस्त्र धारण करते हैं तो उसे अपने ऊपर समेट लेते हैं, आप उस वस्त्र के हो जाते हैं और वस्त्र आपका हो जाता है। यह आपके शरीर की खामियों को छुपा लेता है।धर्म भी उसी प्रकार है आपके मन के अंदर कई तरह की खामियां हैं, कितने ही दूषित विकार हैं धर्म उन सभी को ढंक कर आपके वयक्तित्व और चरित्र को उभारने की प्रेरणा देता है। जब आपको लगने लगे कि आपके अंदर की खामियां आप पर हावी होने लगी हैं तो समझ लीजिए आप धर्म से दूर जा रहे हैं और उस वक्त आपको धर्म के बारे में सोचना चाहिए और अपने धर्म को पहचान कर अपनी दिशा बदल लेनी चाहिए ताकि आप अपने धर्म को जी सकें।

नोट : लेखक यह अपने निजी विचार है , newsvox कंटेंट के संबंध में किसी तरह है दावा नहीं करता )

cradmin
Author: cradmin

Leave a Comment

सबसे ज्यादा पड़ी गई न्यूज
error: Content is protected !!