✍️ संजीव मेहरोत्रा (यह लेखक के अपने निजी विचार और आंकड़े है।)महामंत्री, बरेली ट्रेड यूनियंस फेडरेशन
बरेली । हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों में जागरूकता बढ़ाना और आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रतिबद्धता दिखाना है। यह अभियान वर्ष 2003 से पूरी दुनिया में चलाया जा रहा है। (Suicide Prevention Day 2025)
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हाल ही में एक राष्ट्रीय अख़बार में प्रकाशित विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार, आत्महत्या कोई समाधान नहीं बल्कि एक खतरनाक कदम है, जिसे इंसान निराशा और हताशा की चरम स्थिति में उठाता है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे डिप्रेशन, एंजाइटी और मानसिक दबाव। आत्महत्या का विचार दिमाग में होने वाले जैविक बदलाव के कारण भी उत्पन्न होता है। इसे रोकने के लिए सही इलाज और भावनात्मक सहयोग बेहद ज़रूरी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़े बताते हैं कि हर साल लगभग सात लाख लोग दुनिया भर में आत्महत्या कर लेते हैं। भारत में यह स्थिति और भी चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2021 में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2022 में यह संख्या बढ़कर 1,70,000 से अधिक हो गई। भारत में आत्महत्या की दर प्रति एक लाख जनसंख्या पर 12.4 दर्ज की गई है।
भारत में आत्महत्या के प्रमुख कारणों में पारिवारिक तनाव और कलह, शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ, विवाह संबंधी समस्याएं जैसे दहेज विवाद और तलाक, आर्थिक संकट, शैक्षणिक दबाव और नशे की प्रवृत्ति शामिल हैं। आंकड़े बताते हैं कि पारिवारिक समस्याएं और बीमारियां लगभग 23 प्रतिशत मामलों में जिम्मेदार होती हैं। आर्थिक परेशानियां और शैक्षणिक दबाव भी बड़ी संख्या में युवाओं को इस रास्ते पर धकेल रहे हैं।
एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2011 से 2021 के बीच आत्महत्या की दर में 7.14 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह समस्या खासकर युवाओं में अधिक देखने को मिल रही है। 15 से 29 वर्ष की आयु के बीच के युवा अवसाद और निराशा के चलते सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी मित्र या परिजन में उदासी, निराशा या डिप्रेशन के लक्षण दिखें तो उससे संवाद बनाए रखें, उसे अकेला न छोड़ें और मनोचिकित्सक से संपर्क करें। इलाज के लिए सुरक्षित और असरदार दवाएं उपलब्ध हैं। ज़रूरत है केवल भावनात्मक सहयोग, परिवार का साथ और समझदारी से पेश आने की।
विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि आत्महत्या रोकने के लिए समाज में मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता फैलाना जरूरी है। स्कूल, कॉलेज और दफ्तरों में काउंसलिंग की सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। परिवार और मित्रों को संवाद बनाए रखना होगा ताकि निराशा के शिकार लोगों को यह महसूस हो कि वे अकेले नहीं हैं।
“याद रखिए, आत्महत्या कोई समाधान नहीं है। हर समस्या का इलाज संभव है, बस जरूरत है बात करने और मदद लेने की।”
