बरेली। हेस्टर बायोसाइंसेज लिमिटेड, अहमदाबाद के वैज्ञानिकों की तीन सदस्यीय टीम को वैक्सीन उत्पादन के तकनीकी पहलुओं पर आईसीएआर- आईवीआरआई में एक सप्ताह के लिए प्रशिक्षित किया गया। पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान क्षेत्र में पहला पुनः संयोजक टीका, एसवीपी-गम्बोरो वैक, पशु चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली में विकसित किया जिसे मेसर्स हेस्टर बायोसाइंसेज लिमिटेड, अहमदाबाद को आगे व्यवसायीकरण के लिए स्थानांतरित कर दिया गया । इसी क्रम में हेस्टर बायोसाइंसेज लिमिटेड, अहमदाबाद के वैज्ञानिकों की तीन सदस्यीय टीम ने संस्थान के पशु चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी विभाग में एक सप्ताह तक टीके उत्पादन की बारीकियों को समझा।
आईवीआरआई की टीम में प्रौद्योगिकी की प्रमुख अन्वेषक डॉ. सोहिनी डे, डॉ. सी. मदन मोहन और डॉ. आर. सरवनन शामिल है इस अवसर पर आईसीएआर-आईवीआरआई की संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई के प्रभारी डॉ. अनुज चौहान और हेस्टर बायोसाइंसेज लिमिटेड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नागेश्वर रेड्डी ने वैक्सीन उत्पादन से संबंधित बीज सामग्री के सफल हस्तांतरण के लिए एक प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर किए।यह टीका एक दिन के चूजों में संक्रामक बर्सल रोग, जो मुर्गियों की एक खतरनाक बीमारी है, के खिलाफ उपयोग के लिए है। इस बीमारी का कारण बनने वाला वायरस फैब्रिसीयस के बर्सा को संक्रमित करता है, जो विशेष रूप से पक्षियों में मौजूद एक अंग है जहां बी-लिम्फोसाइट्स उत्पन्न होते हैं और इसे नष्ट कर देते हैं, जिससे पक्षी द्वितीयक जीवाणु संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षा विहीन हो जाते हैं। वायरस के इम्यूनोजेनिक जीन को यीस्ट सिस्टम, सैकरोमाइसीज सेरेविसिया में व्यक्त किया गया ताकि उप-वायरल कण उत्पन्न हो सकें जो सब यूनिट के रूप में कार्य करते हैं और पक्षियों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं। इस टीके का मुख्य लाभ यह है कि यह युवा चूजों में मौजूद मातृ जन्य एंटीबॉडी की उपस्थिति में कार्य करता है।