गोंडा। सावन के महीने में बाबा के भक्त बाबा के होकर रह जाते है। वह बाबा में इतने लीन हो जाते है कि उन्हें हर तरफ बाबा ही बाबा दिखते है। भक्त कांवर ले लेकर दूरदराज नदियों तक पहुंचते है और वहां से जल लाकर बाबा का जलाभिषेक करते है ताकि बाबा उनसे खुश हो जाए और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाए। गोंडा में त्रेतायुग और द्वापरयुग से एक ऐसा मंदिर है जिसे दुःखहरण नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में शिव भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। भोलेनाथ के मंदिर से लाखो लोगो की आस्था जुड़ी हुई है इसीलिए इस मन्दिर पर पूजा अर्चना का अलग ही महत्व है शायद यही वजह है श्रद्धालु शिवभक्त भोलेनाथ का जलाभिषेक कर पुण्य कमाने का काम करते है ।
बाबा दुखहरण नाथ ने किया था भगवान राम के कष्टों का हरण –मान्यता है कि अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ के घर भगवान श्री हरि यानी राम ने अयोध्या में जन्म लिया तो भोलेनाथ के मन में रामजी के दर्शनों की अभिलाषा हुई। भोलेनाथ साधु का रूप धारण करके महल में गए प्रभु राम जी के दर्शन किए दर्शन के बाद जब वहा से भोलेनाथ चले आए तो राम चंद्र जी ने रोना शुरू किया। लोगो में चर्चा हुई की साधू बाबा आए थे उन्होंने राम जी कुछ जादू टोना कर दिया है। दरबारी भेजे गए की साधू को ढूढने के लिए तब साधू भेष भोलेनाथ इसी दुख्खरन नाथ मंदिर वाली जगह पर विश्राम कर रहे थे।
गोंडा और आसपास के जनपदों से आये श्रद्धालुओं नें महादेव का जलाभिषेक कर पुण्य कमाया और हर हर महादेव की जय जयकार करते अपने घर की ओर रवाना हो गए। जिले भर के शिव मंदिरों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गए हैं और कड़ी चौकसी के बीच श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा अर्चना कर रहे हैं। दुखहरण नाथ मन्दिर से लाखो लोगो की आस्था जुड़ी है मान्यता है कि हर बार बारिश की बूंदे भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक जरूर कराती है इसी बारिश में भगवान भोलेनाथ के भक्त उनकी भक्ति में सराबोर हो जाते है।
त्रेतायुग और द्वापरयुग से है इस प्राचीन मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
मुख्यालय से स्टेशन रोड स्थित बाबा दुखहरण नाथ मंदिर का बड़ा ही ऐतिहासिक महत्व है इसीलिए यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है महाशिवरात्रि कजरी तीज और श्रावण मास के अलावा यहां जलाभिषेक और पूजन दर्शन के लिए प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं इसीलिए पर्वों के दौरान जिला प्रशासन यहां पर विशेष इंतजाम करता है बताया जाता है के मंदिर का इतिहास त्रेता युग से ही मिलता है इसकी स्थापना भगवान राम के जन्म के समय भगवान शिव के अयोध्या प्रभाव से जोड़कर देखते हैं वहीं कुछ लोग इसे पांडवों के अज्ञातवास के दौरान टीम द्वारा स्थापित शिवलिंग से भी इस शिवलिंग को जोड़कर देखते हैंl