आईवीआरआई की तीन नई वैक्सीन दिल्ली में लांच

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बरेली, एनवीआई रिपोर्टर

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) ने पशु चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर तीन अत्याधुनिक और नवाचारयुक्त टीकों को सफलतापूर्वक विकसित किया है। तीनों वैक्सीन को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर ) के 97वें स्थापना दिवस पर नई दिल्ली में आयोजित समारोह के दौरान लांच किया गया। यह अवसर विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार में भारत की उन्नति का प्रतीक बन गया।

दिल्ली में आयोजित समारोह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. मांगी लाल जाट, सचिव कृषि विभाग देवेश चतुर्वेदी और आईवीआरआई के निदेशक एवं कुलपति डॉ. त्रिवेणी दत्त समेत देशभर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अधिकारी उपस्थित रहे।

इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी में आईवीआरआई की वैक्सीन और डायग्नोस्टिक तकनीकों को संयुक्त निदेशक डॉ. रूपसी तिवारी के नेतृत्व में शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में पशु विज्ञान से जुड़ी राष्ट्रीय उपलब्धियों को देश-दुनिया के समक्ष प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया, जिसने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान को वैश्विक मंच पर नई पहचान दिलाई।

नेगेटिव मार्कर ट्राइवेलेंट एफएमडी टीका, यह टीका भारत में फैले o, A, Asia-1 प्रकार के खुरपका-मुंहपका वायरस के खिलाफ रक्षा करता है। इसकी खासियत यह है कि यह संक्रमित और टीकाकृत पशुओं में अंतर करने में सक्षम है। इसे डॉ. सुरेश एच. बसगौडनवर और उनकी टीम ने विकसित किया है।

आईवीआरआई पुनः संयोजित पीआरपी चिन्हक टीका, पीआरपी रोग छोटे जुगाली करने वाले पशुओं के लिए विनाशकारी होता है। यह टीका 2030 तक उन्मूलन के वैश्विक लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगा। इसे डॉ. एस. चंद्रशेखर के नेतृत्व में आईवीआरआई मुक्तेश्वर की विषाणु विज्ञान टीम ने तैयार किया है।

कुत्तों में पार्वोवायरस से होने वाले गंभीर संक्रमण की रोकथाम के लिए यह सस्ती, प्रभावी और आत्मनिर्भर भारत अभियान से प्रेरित वैक्सीन विकसित की गई है। इसे भारतीय कैनाइन वायरस स्ट्रेन से तैयार किया गया है। वैज्ञानिक डॉ. विशाल चंदर और उनकी टीम ने इसका निर्माण किया है। इसके अतिरिक्त, सूअर की शंकर लैंडली नस्ल, इंडिमस नामक चूहों की अंतः प्रजनित प्रजाति, पीआरपी-गोटपॉक्स संयुक्त टीका को भी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने प्रमाणित किया है।

Anuj Saxena
Author: Anuj Saxena

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