नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों में क्यूआर कोड अनिवार्य किए जाने के निर्देशों पर फिलहाल कोई रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि सभी होटल और ढाबा संचालक अपने लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्रों को नियमों के अनुसार सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करें।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश शिक्षाविद अपूर्वानंद झा और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि क्यूआर कोड के जरिए भोजनालय मालिकों की पहचान उजागर करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है और यह नीति भेदभावपूर्ण है।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सरकार को क्यूआर कोड संबंधी निर्देश जारी करने से पहले अदालत की पूर्व अनुमति लेनी चाहिए थी। उन्होंने तर्क दिया कि इस प्रकार की पहचान प्रणाली सामाजिक विभाजन को बढ़ा सकती है।
वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह निर्देश खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के नियमों के तहत जारी किए गए हैं और इसका उद्देश्य श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना है। उन्होंने कहा कि उपभोक्ताओं को यह जानने का अधिकार है कि वे किस प्रकार के भोजनालय में भोजन कर रहे हैं।
न्यायालय ने कहा कि यदि कोई भोजनालय सामान्य दिनों में मांसाहारी भोजन परोसता है लेकिन यात्रा के दौरान केवल शाकाहारी भोजन परोसता है, तो उपभोक्ता को इसकी जानकारी होनी चाहिए। चयन का अधिकार उपभोक्ता के पास ही रहेगा।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2024 में मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकारों द्वारा जारी इसी तरह के निर्देशों पर रोक लगा दी थी, जिनमें भोजनालयों के मालिकों और कर्मचारियों की पहचान सार्वजनिक करने को कहा गया था।
इस आदेश के साथ सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर संचालित भोजनालयों को नियमों के अनुसार संचालित किया जाना चाहिए और उपभोक्ताओं को पूर्ण जानकारी देना उनकी जिम्मेदारी है।
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