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स्पेशल स्टोरी : पाप से मुक्ति के लिए पांडु पुत्र भीम ने की थी पृथ्वीनाथ मंदिर की स्थापना,इस मंदिर में  एशिया में सबसे बड़ा है शिवलिंग ,

भगवान भोले के भक्तों के आस्था का केंद्र है खरगूपुर का ऐतिहासिक पृथ्वीनाथ मंदिर,
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राजकुमार सिंह ,

गोंडा। जिले के खरगूपुर में स्थित ऐतिहासिक मंदिर बाबा पृथ्वीनाथ की स्थापना पांडु पुत्र भीम ने की थी। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान जब भीम ने बकासुर नाम के राक्षस का वध किया तो उस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की और भगवान भोलेनाथ का पूजन कर प्रायश्चित किया। पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर सैकड़ों वर्षो से भक्तों की आस्था का केंद्र है और सिर्फ गोंडा ही नहीं आसपास के कई जिलों के लोग यहां पहुंचकर भगवान भोले का जलाभिषेक करते हैं और अपनी सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
मन्दिर के मुख्य पुजारी जगदंबा प्रसाद तिवारी बताते हैं कि सावन महीने में यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ का दर्शन करते हैं। सोमवार को यह भीड़ लाखों की संख्या में पहुंच जाती है।

 

वीडियो में खबर देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे 

 

https://youtu.be/FsGgGCUaW2I

 

खरगूपुर में स्थित ऐतिहासिक पृथ्वीनाथ मंदिर करीब 5 हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। मान्यता है कि पांडु पुत्र भीम जब अपने पांचों भाइयों के साथ अज्ञातवास पर थे तो उसी दौरान उन्होंने एक चक्र नगरी में शरण ली थी। यहां पर बकासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था जो गांव के लोगों में से एक व्यक्ति को प्रतिदिन खा जाया करता था। एक दिन जब भीम को शरण देने वाले परिवार का नंबर आया तो वह खुद उस परिवार की जगह भोजन बनने के लिए वह बकासुर के पास गए और वहां पर युद्ध करते हुए भीम ने बकासुर का वध कर दिया। बकासुर के वध से जो पाप लगा उसी पाप से मुक्ति के लिए उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की और भगवान भोलेनाथ का पूजा अर्चना कर अपने पाप के लिए प्रायश्चित किया। यह शिवलिंग प्राचीन काल की बताई जाती है। हालांकि समय के साथ यह भगवान महादेव का यह मंदिर धीरे धीरे जर्जर हो गया और बाद में भीम द्वारा स्थापित यह शिवलिंग धीरे-धीरे जमीन में समा गया।

 

मकान निर्माण के लिए हो रही खुदाई में मिला शिवलिंग

कालांतर में खरगूपुर के राजा गुमान सिंह की अनुमति से यहाँ के निवासी पृथ्वी सिंह ने मकान निर्माण के लिए खुदाई शुरू करायी। उसी रात स्वप्न में पता चला कि नीचे सात खण्डों का शिवलिंग दबा हुआ है। इसके बाद पृथ्वी सिंह ने पूरे टीले की पुन: खोदाई करायी जहाँ एक विशाल शिवलिंग उभर कर सामने आया। इसके बाद पृथ्वी सिंह ने हवन के उपरान्त पूजन-अर्चन शुरू कराया। तभी से इसका नाम पृथ्वीनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया और बड़ी संख्या में लोगों के आस्था का केंद्र बन गया। मन्दिर में स्थापित साढ़े पांच फुट ऊँचा शिवलिंग काले-कसौटे दुर्लभ पत्थरों से निर्मित है। लोगों का मानना है कि यहां सच्चे मन से दर्शन पूजन व जलाभिषेक करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

 

पुरातत्व विभाग ने की एशिया के सबसे बड़े शिवलिंग होने की पुष्टि

ऐतिहासिक बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। पुरातत्व विभाग ने भी शिवलिंग को एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग होने की पुष्टि की है। दरअसल करीब तीन दशक पहले जिले के तत्कालीन सांसद कुंवर आनंद सिंह ने पुरातत्व विभाग को इस मंदिर की पौराणिकता की जांच के लिए पत्र लिखा था। सांसद के पत्र पर जब पुरातत्व विभाग की टीम यहां पहुंची और उसने शिवलिंग की जांच की तो जांच में यह पाया गया शिवलिंग एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है जो 5 हजार वर्ष पूर्व महाभारत काल का है।

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