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धार्मिक मान्यता : फज़ीलत और रहमत वाली रात है शब-ए-क़द्र, नेक दुआएं होती हैं कुबूल,

 

बरेली । शब-ए-कद्र इंतिहाई बरकत और फ़ज़ीलत वाली रात है। इसको लैलत-उल-क़द्र भी कहा जाता है यह रात सिर्फ रसूल अल्लाह की उम्मत को अता की गई है। इस रात फरिश्तों को साल भर के कामों और खिदमात पर मामूर (नियुक्त) किया जाता है और बारगाहे इलाही में सब के नेक आमाल मकबूल (स्वीकार) किए जाते हैं। इस रात इबादत करने वाले को हज़ार माह से भी ज़्यादा की इबादत का सवाब मिलता है।

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अल्लाह के रसूल ने फरमाया “शब-ए-क़द्र रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी अशरे की ताक रातों यानी 21, 23, 25, 27 और 29वीं शब में तलाश करो। फरमान ए मुस्तफा है कि जब शब-ए-क़द्र आती है तो फरिश्तों के सरदार हज़रत जिबरील फरिश्तों के साथ आते हैं और हर उस बन्दे के लिएं बख्शीश की दुआ करते हैं। जो खड़े या बैठे अल्लाह के ज़िक्र में लगा हुआ होता है। फिर जब ईद का दिन आता है अल्लाह तआला अपने उन बंदों पर फरिश्तों के सामने खुशी ज़ाहिर करता है और फरमाता है ” ऐ मेरे फरिश्तों! उस मज़दूर की मज़दूरी क्या है जो काम पूरा करते हैं? फरिश्ते कहते हैं की ऐ मेरे परवरदिगार उसकी मज़दूरी यह है की उसको काम का पूरा बदला दिया जाए। फिर अल्लाह फरमाता है ऐ मेरे फरिश्तों, मेरे बंदों ने मेरे मुकर्रर किए हुए फर्ज़ को अदा कर दिया अब यह दुआ के लिएं अपने घरों से ईद गाह की तरफ निकले हैं।

 

 

कसम है अपनी इज़्ज़त अपने जलाल अपनी बख्शिश और रहमत की मैं उनकी दुआओं को कुबूल करूंगा। फिर अल्लाह फरमाता है ऐ मेरे बंदों अपने घरों को लौट जाओ मैंने तुम्हे बख्श दिया और तुम्हारी बुराइयों को नेकियों में बदल दिया। इस रात में इबादत करने के मुख्तलिफ तरीके हैं जो शब-ए-क़द्र में सच्ची नियत से नफिल नमाज़ पढ़ेगा उसके अगले पिछले गुनाह माफ हो जायेंगे।
1- बुजुरगाने दीन इन आखिरी दस रातों में दो रकात नफिल नमाज़ शब-ए-क़द्र की नियत से पढ़ा करते थे। और कुछ बुजुर्गों से रिवायत है की जो हर रात कुरआन की दस आयात शब-ए-क़द्र की नियत से पढ़े तो इस रात की बरकत और सवाब से महरूम न होगा।
2- दो रकात नफिल नमाज़ इस तरह पढ़ें की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 7 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ और सलाम फेरने के बाद 70 बार अस्तग़फिरउल्लाह व अतूबो इलैहि पढ़ें। अल्लाह उसे और उसके माँ–बाप के गुनाहो को बख्श देगा।

लेख : नबीरा ए आलाहज़रत मौलाना मो0 कैफ रज़ा ख़ां, राष्ट्रीय अध्यक्ष, दरगाह उस्तादे ज़मन ट्रस्ट, बरेली।

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