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पुरुषोत्तम मास आज से,बरसेगी हरि की कृपा,

 

18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा अधिक मास:

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-आचार्य मुकेश मिश्रा

बरेली। बीते 15 दिनों से देवदेवेश्वर महादेव की कृपा की फुहार सावन मास में निरंतर बरस रही है। वैसे तो सावन का महीना इस बार दो महीनों को है। जिसमें एक महीना के अवधि पुरषोतम मास की रहेगी। 2 महीनों के बीच का महीना पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। और पुरुषोत्तम मास में पूजा-पाठ का फल भी अधिक प्राप्त होता है। इसलिए इस मास का नाम अधिक मास भी कहा जाता है। इस बार पुरुषोत्तम मास की अवधि 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगी ।

 

 

पुरुषोत्तम का महीना भगवान विष्णु को समर्पित माला जाता है। इसलिए इस बार सावन में हर के साथ हरि की कृपा निरंतर भक्तों पर बरसेगी। इस महीने में पूजा पाठ दान पुण्य का फल अक्षय कहा गया है। शास्त्रों में मान्यता है कि यदि पुरुषोत्तम मास में पूजा-पाठ जप आराधना की जाए। तो प्राणी को सरलता से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वही इस महीने में भगवान की कथा सुनने का विशेष महत्व माना गया है। कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के पापों का समन होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा की तीव्रता से वृद्धि होती है। और भगवान की महती कृपा भक्तों को शीघ्र प्राप्त होती है। जिन जातकों की कुंडली में ग्रह दोष, पितृदोष, श्राप दोष इत्यादि है। तो ऐसे जातकों के लिए महीना वरदान की तरह है।

 

 

 

ऐसे होता है अधिक मास
अंग्रेजी कैलेंडर में हर साल 12 महीने होते हैं, लेकिन हिंदू पंचांग की गणनाओं के अनुसार हर 3 साल में एक बार एक अतिरिक्त माह होता है। जिसे अधिक मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। अधिक मास में पूजा पाठ, व्रत, साधना का काफी महत्व होता है। हिंदू कैलेंडर सूर्य और चंद्रमा के वर्ष की गणनाओं से चलता है। अधिक मास चंद्र साल का अतिरिक्त भाग है जो 32 माह 16 दिन 8 घंटे के अंतर से बनता है। सूर्य और चंद्र वर्ष के बीच इस अंतर को पाटने या संतुलित करने के लिए अधिक मास लगता है।

*कैसे करें पूजा*
इस मास में व्यक्ति द्वारा जो भी व्रत, उपवास, दान, पुण्य, पूजा आदि किये जाते हैं, उसका कई गुना फल मिलता है। इसलिए इसे पुरूषोत्तम मास कहते हैं। लक्ष्मी सहित नारायण का अधिक मास में षोडशोपचार पूजन करने का विशेष महत्व है। लक्ष्मी और नारायण को विविध नामों से बोलकर पूजा करने के पश्चात पुष्प अर्पित करना चाहिए। पूजा के अन्त में जल पात्र में कुमकुम, अक्षत, पुष्प मंत्रों के साथ चढ़ाना चाहिए। इस मास में घी-गुड़ से 33 मालपुये को कांस्य पात्र में रखकर भगवान लक्ष्मी नारायण को अर्पण करना चाहिए। अन्त में उनसे प्रार्थना करना चाहिए। इस अधिकमास में व्रत करने से कुरूक्षेत्रादि में स्नान, गोदान, भूमिदान, स्वर्ण दान आदि के तुल्य फल प्राप्त होता है।

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