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भारत ने अपनी बेटियों के उन्नति-पथ पर कभी सीमा-रेखाएं नहीं खींची तो अब क्यों :  कथा व्यास साध्वी आस्था भारती

 

बरेली : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 21 से 27 नवंबर तक एम.बी. इंटर कॉलेज ग्राउंड  में श्रीमद भागवत कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। इस मौके पर कथा व्यास साध्वी आस्था भारती  ने कहा कि भारत का शुद्ध पारंपरिक वातावरण नारियों के लिए सदा से ही स्वच्छंद रहा है। भारत ने अपनी बालाओं, अपनी बेटियों के उन्नति-पथ पर कभी सीमा-रेखाएं नहीं खींची। उन्हें सदैव उड़ान भरने के लिए स्वतंत्र नभ दिया है। फिर आज सर्वाधिक आधुनिक कहे जाने वाले दौर में ये संकुचित रेखाएं क्यों? कथा व्यास साध्वी आस्था भारती जी ने  रुक्मिणी जी के संकल्प की चर्चा की  साथ ही  अपनी पुरातन संस्कृति के प्रति जगाते हुए समाज में नारी की खोई गरिमा को लौटाने का आह्वान किया।

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नारी के सम्मान की पुनर्स्थापना हेतु नारी को तो उसके वास्तविक स्वरूप का बोध करवाना ही है, साथ ही पुरुष को भी नारी की गरिमा का बोध करवाना आवश्यक है। ये दोनों तब तक संभव नहीं, जब तक नारी और पुरुष दोनों अध्यात्म के स्तर पर जागृत होकर अपने आत्मिक स्वरूप से परिचित नहीं हो जाते। सिर्फ नीतियों और कानून बनाने से महिला विरोधी माहौल नहीं बदलेगा।

 

 

 

बदलाव के लिए जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, वह है-वैचारिक या आत्मिक सशक्तिकरण। यही कार्य दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान अपने प्रकल्प “संतुलन” के माध्यम से कर रहा है।श्री आशुतोष महाराज जी का कथन है– शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक सशक्तिकरण के साथ जब आत्मिक सशक्तिकरण होगा, तभी महिलाओं के सम्पूर्ण सशक्तिकरण की परिभाषा पूर्ण होगी। अपने पीयूष अनुदानों का जन-जन को पान कराएगी, आएगा वह ब्रह्ममुहूर्त जब नारी सतयुग लाएगी।

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