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धर्म की बात :उत्तम स्वास्थ्य के लिए वरदान है कावड़ यात्रा,

मोहिनी दासी- कथा व्यास बरेली,

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बरेली। हिंदू धर्म के पांचवे महीने में पंचानन बाबा के परम भक्त‌ अपने तारणहार को शीतलता देने के लिए गंगा आदि नदियों से जल लाकर शिवलिंग को चढ़ाते हैं। दरअसल गंगा तट से शिवलिंग तक की गई यात्रा को कावड यात्रा कहते हैं। इस कावड़ यात्रा की परंपरा को भोले बाबा के भक्त सदियों से इस परंपरा को निभाए जा रहे हैं। वर्तमान में भौतिक युग की बेदनाओ को शांत करने के लिए कावड़ यात्रा बेहद फायदेमंद है। जहां बढ़ते प्रदूषण के कारण जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है। और शरीर को तमाम बीमारियां घेर रही है। इन सभी बीमारियों से निपटने के लिए कावड़ यात्रा अत्यंत लाभदायक साबित होती है क्योंकि प्रकृति की सबसे सुंदर मनमोहक छवि का निखार सावन में ही नजर आता है। यात्रा से सीधे प्रकृति से जुड़ा होता है। वही यात्रा में चलने से मधुमेह, रक्तचाप, मोटापा फेफड़े संबंधित अनेक बीमारियों पर नियंत्रण सरलता से किया जा सकता है।

 

नोट : लेखक अपने व्यक्तिगत विचार है | 

सरल शब्दों में कहें उत्तम स्वास्थ्य के लिए कावड़ यात्रा एक वरदान की तरह है। बात करें अध्यात्म की तो शिव इस चर-अचर जगत की चेतना का मूल हैं। जगत की सारी अशुद्धि को शुद्ध करना शिव का कर्म है। जगत की सारी अच्छी और बुरी ऊर्जाएं शिव से ही शुद्ध होती हैं। ऐसा माना जाता है कि जहां शिवलिंग की स्थापना होती है, उस स्थान की सारी नकारात्मकता स्वयमेव नष्ट हो जाती है। शिवलिंग के पास से निकलने वाली सभी बुरी शक्तियां उसके स्पर्श से शुद्ध हो जाती हैं। इसी अवधारणा के साथ शिवलिंग के जलाभिषेक को मान्यता प्राप्त हुई है। माना जाता है कि जब बुरी शक्तियां प्रबल होती हैं, तब उनका ताप बहुत बढ़ जाता है।

 

यही शक्ति जब शिवलिंग से टकराती है, तब अपने कर्म के अनुसार वह उसका पूरा ताप हर उसे शुद्ध कर देते हैं। इस क्रम में शक्ति तो शुद्ध हो जाती है, पर उसके ताप को ग्रहण कर शिवलिंग की गर्मी बढ़ जाती है। शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाने से उस अशुद्ध ताप में कमी आती है। दूध और पानी के मिश्रण से शिवलिंग की गर्मी समाप्त होती है और शक्ति में वृद्धि होती है। तब वह पुनः शक्तिशाली होकर दोगुनी क्षमता से विश्व के शुद्धिकरण में संलग्न हो जाते हैं। इस बात को व्यक्तिगत स्तर पर बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। यदि हम भयंकर तनाव, थकान या काम की अधिकता से परेशान हों, तो हमारा दिमाग गर्म हो जाता है। ऐसी हालत में हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है। इसके ठीक विपरीत अगर हमारा दिमाग और मन शांत हो, तो हमारी कार्यक्षमता बढ़ जाती है और हम बेहतर ढंग से काम कर पाते हैं।

 

कांवड़ यात्रा का धार्मिंक महत्व तो जगजाहिर है, लेकिन इस कांवड़ यात्रा से वैज्ञानिकों ने उत्तम स्वास्थ्य भी जोड़ दिया है। प्रकृति के इस खूबसूरत मौसम में जब चारों तरफ हरियाली छाई रहती है तो कांवड़ यात्री भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए पैदल चलते हैं।
पैदल चलने से हमारे आसपास के वातावरण की कई चीजों का सकारात्मक प्रभाव हमारे मनमस्तिष्क पर पड़ता है। चारों तरफ फैली हरियाली आंखों की रोशनी बढ़ाती है। वहीं ओस की बूंदे नंगे पैरों को ठंडक देती हैं तथा सूर्य की किरणें शरीर को रोगमुक्त बनाती हैं।

ये यात्रा प्रकृति और मानव के संबंधों में नई उष्मा, निकटता एवं प्रेम को बढ़ाती है। डॉक्टरों के मुताबिक धार्मिक चेतना से मानव जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कांवड़ यात्रा स्वास्थ्यप्रद होती है। पैदल, नाचते-गाते और दौड़ लगाते हुए शिवभक्त जाते हैं। इससे शरीर में खुशी के हार्मोंस जेनरेट होते हैं। व्यक्ति तनाव मुक्त हो जाता है। पैदल चलने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं और हार्ट और फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है।

पवित्र गंगा को स्वर्ग अर्थात् पहाड़ों से पृथ्वी अर्थात् मैदानी इलाकों में लाने के लिए महान शिव के द्वारा जिस श्रमदान का आयोजन किया गया वह उस समय अत्यंत दुष्कर कृत्य रहा होगा। पर्वतों के बीच गमन करना और श्रमदान करना निश्चित ही कोई सुगम कार्य नही रहा होगा। कितने ही किसान-श्रमिक कर्तव्य की बलिवेदी पर न्योछावर हुए होंगे।

यह बात वह शिव भक्त कांवड़िये आसानी से समझ सकते हैं जो गोमुख या उसके भी ऊपर ऊंचाइयों से जल लाने हेतु पैदल पद यात्रा करते हैं। उसी महान श्रमदान की स्मृति आज भी कांवड़ के विशाल आयोजन में संरक्षित दिखाई पड़ती है।

संभवतः हताहत तथा कालकलवित हुए कृषकों व श्रमिकों की आत्मा की शांति की कामना के लिए उसी पवित्र जल से शिव को जलाभिषेक करने की उज्जवल परम्परा का विकास कांवड़ यात्रा मे कहीं न कहीं दृष्टिगोचर होता है। इस तथ्य से यह भी जाना जा सकता है कि जो जल हमें आज इतनी आसानी से प्राप्त है वह कितना मूल्यवान है।

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