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गणेश चतुर्थी: अत्यंत मंगलकारी संयोगो मे होगा मंगल मूर्ति मोरिया का आगमन

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ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा 

भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इसी तिथि से 10 दिवसीय गणेश उत्सव प्रारंभ हो जाते हैं जो अनंत चतुर्दशी तक चलते हैं।  इस बार यह त्योहार 10 सितंबर  शुक्रवार से प्रारंभ होगा और 19 सितंबर तक चलेगा।

चतुर्थी पर पांच ग्रह अपनी श्रेष्ठ स्थिति में विद्यमान रहेंगे। इनमें बुध कन्या राशि में, शुक्र तुला राशि में, राहु वृषभ राशि में, केतु वृश्चिक राशि तथा शनि मकर राशि में विद्यमान रहेंगे। बाजार में उन्नती होगी।इस बार 10 सितंबर को चित्रा-स्वाति नक्षत्र के साथ रवियोग रहेगा। चित्रा नक्षत्र शाम 4.59 बजे तक रहेगा और इसके बाद स्वाति नक्षत्र लगेगा। वहीं सुबह 5.42 बजे से दोपहर 12.58 बजे तक रवि योग रहेगा।इस बार मंगल बुधादित्य योग भी रहेगा। सूर्य, मंगल और बुध तीनों ग्रह का एक ही राशि में युति कृत होने से इस योग का निर्माण होता है। यह योग नए कार्य के आरंभ के लिए अति श्रेष्ठ है।चतुर्थी पर सुबह 11 बजकर 9 मिनट से रात 10 बजकर 59 मिनट तक पाताल निवासिनी भद्रा रहेगी। कहते है कि यह स्थिति धन देने वाली गई है। भद्रा का असर गणेशजी को विराजित करने और उनकी पूजा करने पर नहीं पड़ेगा। भादो मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी शुक्रवार के दिन चित्रा नक्षत्र, ब्रह्म योग, वणिज करण व तुला राशि के चंद्रमा की साक्षी में आ रही है। वणिज करण की स्वामिनी माता लक्ष्मी हैं। अर्थात गणेश के साथ माता लक्ष्‌मी का आगमन होगा। भगवान गणेश रिद्धि सिद्धि व शुभ लाभ के प्रदाता मने गए हैं। इसलिए इस बार पूजा का लाभ कई गुना अधिक मिलेगा।

-गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त

ज्योतिषअनुसार ग्रह, नक्षत्र व पंचांग की श्रेष्ठ स्थिति में गणेश पूजन करें। गणेश पूजन के लिए मध्याह्न खास मुहूर्त 11:03:से 01:32तक रहेगा।

 -चतुर्थी पर कैसे करें पूजा

भगवान गणपति में आस्था रखने वाले लोग  चतुर्थी पर व्रत रखकर उन्हें प्रसन्न करके मनचाहे फल की कामना करते हैं.। स्नान करके साफ हल्के लाल या पीले रंग के कपड़े पहनें। भगवान गणपति भगवान को  लाल रंग का कपड़ा चौकी पर बिछाकर स्थापित करें। भगवान गणेश की पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करें। भगवान गणपति के सामने दीया जलाएं और लाल गुलाब के फूलों से भगवान गणपति को सजाएं। पूजा में तिल के लड्डू गुड़ रोली, मोली, चावल, फूल तांबे के लौटे में जल, धूप, प्रसाद के तौर पर केला और मोदक रखें। भगवान गणपति के सामने धूप दीप जलाकर उनको मंत्रों का जाप करें।

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