ज्योतिषाचार्य -पंडित ललित तिवारी
जब भी हम किसी मंदिर अथवा चित्र को देखते हैं तो गणेश जी की प्रतिमा के साथ में हमें लक्ष्मी माता भी साथ में अवश्य दिखाई देती हैं। किन्तु हमें से कुछ ही लोग होंगे जिनको यह पता होगा कि गणेश जी का लक्ष्मी माता से क्या संबंध है क्यों इनकी पूजा साथ में होती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में विराजमान थे। दोनों आपस में चर्चा कर रहे थे इसी बीच लक्ष्मी माता के मुख से निकल गया की बिना उनकी आराधना किए किसी का बस नहीं चलता। संसार का हर व्यक्ति मुझे प्राप्त करने के लिए ही पूजा-अर्चना करता रहता है। भगवान विष्णु को समझते देर नहीं लगी कि लक्ष्मी माता को अपने ऊपर अभिमान हो गया है।
भगवान विष्णु ने लक्ष्मी माता का अभिमान समाप्त करने की ठान ली। भगवान विष्णु ने लक्ष्मी माता पर कटाक्ष करते हुए कहा एक स्त्री तब तक संपूर्ण नहीं मानी जाती जब तक की उसे कोई संतान ना हुई हो। लक्ष्मी माता को कोई संतान नहीं थी अतः यह सुनकर वह अत्यंत दुखी हो गई और वे वहां से सीधे अपनी सखी पार्वती माता के पास पहुंच गयी और उन्हें पूरी बात बताई। पार्वती जी यह बात बड़ी अच्छी से जानती थी कि लक्ष्मी माता का मन अत्यधिक चंचल है वे अधिक समय पर एक स्थान पर नहीं रुकती हैं।
किंतु पार्वती माता लक्ष्मी माता का दुख नहीं देख पा रहे थे। इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र गणेश को लक्ष्मी माता को सौपते हुए कहा आप इससे अपना दत्तक पुत्र बना लें। यह सुनकर लक्ष्मी माता प्रसन्न हो गई। उन्होंने गणेश जी को आशीर्वाद दिया जो भी जातक उनकी पूजा करनी है आएगा उसे बिना गणेश की पूजा किए हुए फल की प्राप्ति नहीं होगी। लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमा को आप ध्यान पूर्वक देखेंगे तो आपको पता चलेगा लक्ष्मी माता का आसन थोड़ा ऊंचा होता है वहीं गणेश जी का आसन थोड़ा नीचा होता है क्योंकि उनका पद एक का पुत्र हैं।
श्री गुरु गणेशाय नमःगाइए गाइए गणपति जगबन्दन।शंकर सुवन भवानी नन्दन।।
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