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गोपाष्टमी उत्सव स्पेशल : हमारी संस्कृति का प्राण है गौमाता -ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा

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ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा

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 बरेली। गौमाता के प्रति आस्था श्रद्धा समर्पण गोपाष्टमी का पावन पर्व 11 नवंबर गुरुवार को पड़ रहा है। दरअसल यह पावन पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। पुराणों की मान्यता के अनुसार कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि को भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज वासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। इसके बाद आठवें दिन यानी अष्टमी को देवराज इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी थी। कामधेनु गाय ने अपने दूध से भगवान का अभिषेक किया था। इसलिए श्री कृष्ण का नाम भी गोविंद  पड़ा। इसी समय से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। जो कि अब तक चला रहा आ रहा है। इस दिन गौशालाओं की संस्थाओं को कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए। और सारा दिन गौ के प्रति समर्पित होना चाहिए। ऐसा करने से ही गोवंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी।

जिस पर हमारी उन्नति सोलह आने  निर्भर है। गाय की रक्षा ही हमारी रक्षा है। गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविंद की तरह ही पूज्य है। पृथ्वी पर गाय ही साक्षात देवी के समान है। ऐसा वेद पुराणों में उल्लेख मिलता है। गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाश चारी देवता और रंभाने की आवाज में प्रजापति और थनो में समुद्र प्रतिष्ठित है। भविष्य पुराण के अनुसार गाय को माता रानी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। गौ माता के पृष्ठ देश में ब्रह्मा का वास है। गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का मध्य में समस्त देवताओं और रोम कूपों में महर्षिगणो का पूंछ में अनंतनाग, खूरो में समस्त पर्वत गोमूत्र में गंगादि  नदियां गोमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य चंद्र विराजित रहते हैं। कहते हैं गौमाता में 33 करोड़ देवता वास करते हैं। केवल गाय की पूजा से ही सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। 33 कोटि देवताओं की पूजा का फल अकेले गौमाता से ही मिल जाता है।  इसलिए हमारी ऊर्जा शक्ति की गौ माता की जननी है। भारतीय समाज में गाय को गौ माता कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तो सबसे पहले गाय को ही पृथ्वी पर भेजा था। सभी जानवरों में मात्र गाय ही ऐसा जानवर है जो मां शब्द का उच्चारण करता है, इसलिए माना जाता है कि मां शब्द की उत्पत्ति भी गौवंश से हुई है। गाय हम सब को मां की तरह अपने दूध से पालती-पोषती है। आयुर्वेद के अनुसार भी मां के दूध के बाद बच्चे के लिए सबसे फायदेमंद गाय का ही दूध होता है।

-गाय का वैज्ञानिक महत्व

 गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, ‍जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं।गाय का गोबर परमाणु विकिरण को कम करता है। गाय के गोबर में अल्फा, बीटा और गामा किरणों को अवशोषित करने की क्षमता है। घर के बाहर गोबर लगाने की परंपरा के पीछे यही वैज्ञानिक कारण है। वहीं गाय के सींगों का आकार पिरामिड की तरह होने के कारणों पर भी शोध करने पर पाया कि गाय के सींग शक्तिशाली एंटीना की तरह काम करते हैं और इनकी मदद से गाय सभी आकाशीय ऊर्जाओं को संचित कर लेती है और वही ऊर्जा हमें गौमूत्र, दूध और गोबर के द्वारा प्राप्त होती है। इसके अलावा गाय की कूबड़ ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। इसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है। इसलिए गाय का दूध हल्का पीला होता है। यह पीलापन कैरोटीन तत्व के कारण होता है। जिससे कैंसर और अन्य बीमारियों से बचा जा सकता है। गाय की बनावट और गाय में पाए जाने वाले तत्वों के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है। जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और मानसिक शांति मिलती है। 

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