बरेली। दरगाह आला हज़रत व ताजुश्शरिया में चल रहे 107वें उर्स-ए-रज़वी के अवसर पर क़ाज़ी-ए-हिन्दुस्तान हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा खां क़ादरी
बच्चों और बच्चियों में नमाज़, रोज़ा, तिलावत-ए-कुरआन और इस्लामी किताबों को पढ़ने का शौक़ पैदा करें, ताकि वो हलाल और हराम में फर्क़ कर सकें और गुमराही से बच सकें।क़ाज़ी-ए-हिन्दुस्तान ने खासतौर से बच्चियों की तालीम और परवरिश पर तवज्जो दिलाते हुए कहा कि असरी तालीम के नाम पर बच्चियों को गुमराह किया जा रहा है। उन्होंने तीन बुनियादी वजहें बताईं जिनसे मुस्लिम बच्चियां इरतिदाद के फितने में फंस रही हैं—सोशल मीडिया का बेहिसाब इस्तेमाल, मखलूत तालीम और शादी-ब्याह में गैरज़रूरी ख़र्चे।
उन्होंने मुस्लिम घरानों से अपील की कि अपनी बेटियों को सोशल मीडिया की बुराइयों से बचाएं, पाक-साफ तालीम दिलाएं और शादी-ब्याह में फिज़ूलखर्ची से गुरेज़ करें।उन्होंने औरतों के पर्दे की अहमियत बयान करते हुए कहा कि कुरआन और हदीस में पर्दा फ़र्ज़ बताया गया है। लेकिन अफसोस! आज हमारी बहनें इससे दूर होती जा रही हैं, जिससे घरों से बरकत उठती जा रही है।
मुसलमान होने का तकाज़ा है कि अपने घर की औरतों में पर्दे का माहौल कायम करें। साथ ही, उन्होंने हलाल रोज़ी कमाने और बच्चों को वही खिलाने की ताकीद की ताकि उनकी रूहानियत पाक-साफ बनी रहे।
उर्स के मौके पर मुफ्ती अफ़ज़ल रज़वी ने आला हज़रत के तक़वे और फतवों पर बयान किया। उन्होंने कहा कि आला हज़रत ने उम्रभर गुस्ताख़े रसूल का रद किया और लोगों के दिलों में मोहब्बत-ए-रसूल जगाई। मौलाना शकील समेत बाहर से आए उलमा-ए-किराम ने भी तक़रीरात कीं।
जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व उर्स प्रभारी सलमान हसन खान (सलमान मियां) ने बताया कि इस्लामी दुनिया के उलमा-ए-किराम ने उर्से आला हज़रत में शिरकत की और खिराजे अक़ीदत पेश किया। क़ारी शरफ़ुद्दीन रज़वी की तिलावत से प्रोग्राम का आगाज़ हुआ जबकि मौलाना गुलज़ार रज़वी ने निज़ामत की। नातख़्वां हज़रात ने नात-ओ-मनक़बत पेश कीं।
फरमान मियां ने बताया कि ज़ायरीन के लिए लंगर और ठहरने का इंतज़ाम बड़े पैमाने पर किया गया। देश में अमनो-अमान की दुआ की गई और मरकज़ से उर्स का लाइव प्रसारण किया गया जिसे भारत ही नहीं बल्कि दुबई, यूके, अमेरिका, हॉलैंड, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका तक सुना गया।
इस मौके पर जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा की तमाम ब्रांचों के वालंटियर्स मौजूद रहे। मुख्य रूप से डॉ. मेहँदी हसन, हाफ़िज़ इकराम, मुफ्ती अली असगर खान, शमीम अहमद, मोईन खान, नदीम सुभानी, समरान खान, कारी वसीम, कौसर अली, यासीन खान, सय्यद रिज़वान, मुहम्मद जुनैद रज़ा, अब्दुल सलाम और दन्नी अंसारी समेत सैकड़ों अकीदतमंदों ने शिरकत की।
