बरेली। देशभर के IDBI बैंक के अधिकारियों और कर्मचारियों ने सरकार से अपील की है कि बैंक के रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया को रोका जाए। उनका कहना है कि यह कदम राष्ट्रहित, बैंक के 3 करोड़ ग्राहकों और 20,000 से अधिक कर्मचारियों के भविष्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
IDBI बैंक के संयुक्त कर्मचारी मंच (UFIOE) के प्रतिनिधियों ने हाल ही में दिल्ली में संसद सत्र के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों से मुलाकात कर अपना विरोध दर्ज कराया। उन्होंने बताया कि सरकार और LIC की वर्तमान में IDBI बैंक में कुल 94% हिस्सेदारी है, जिसमें से 61% हिस्सेदारी को निजी और विदेशी निवेशकों को बेचे जाने की प्रक्रिया जारी है। यूनियन का कहना है कि यह लाभ कमा रही संस्था है, जिसे बेचने का कोई औचित्य नहीं है। बैंक ने पिछले पांच वर्षों में लगातार मुनाफा कमाया है – वर्ष 2024-25 में बैंक ने ₹7,515 करोड़ का शुद्ध लाभ अर्जित किया है।
कर्मचारियों ने यह भी चिंता जताई है कि संभावित खरीदार जैसे दुबई की एमिरेट्स NBD और कनाडा की फेयरफैक्स जैसी विदेशी कंपनियों को केवल बैंक की बहुमूल्य अचल संपत्तियों में रुचि है, न कि उसके सामाजिक दायित्वों या बैंकिंग सेवाओं में। बैंक के पास देशभर में 2,108 शाखाएं हैं और यह 18.72 लाख जन-धन खातों सहित करोड़ों खाताधारकों को सेवा दे रहा है।
यूनियन के अनुसार, निजीकरण से अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिला और दिव्यांग कर्मचारियों सहित समाज के वंचित वर्गों पर सीधा असर पड़ेगा। साथ ही, IDBI (उपक्रम का हस्तांतरण और निरसन) अधिनियम, 2003 के तहत कर्मचारियों को दी गई सेवा सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी।
संघ ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह पूर्व में संसद में दिए गए उस वादे का पालन करे जिसमें कहा गया था कि सरकार IDBI बैंक में अपनी हिस्सेदारी 51% से नीचे नहीं जाने देगी। यूनियन जल्द ही प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री से मिलने का समय मांग रही है ताकि अपनी चिंताएं सीधे तौर पर रख सकें।
संजीव मेहरोत्रा, महामंत्री, बरेली ट्रेड यूनियंस फेडरेशन ने कहा कि यह केवल कर्मचारियों की नहीं, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक संप्रभुता की लड़ाई है। यूनियनों ने बैंक के सामाजिक और आर्थिक योगदान को देखते हुए रणनीतिक विनिवेश को तत्काल रोकने की मांग की है।
