बरेली : उर्से रज़वी में परचम कुशाई व हुज्जातुल इस्लाम के बाद मुख्य कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय नातिया उर्स स्थल इस्लामिया मैदान में रात 10 बजे के बाद दरगाह प्रमुख हजरत मौलाना सुब्हान रज़ा खान (सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती व सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) की सदारत व सय्यद आसिफ मियां उर्स प्रभारी राशिद अली खान की देखरेख में शुरू हुआ। जिसमें देश विदेश के मशहूर शायरों ने अपने-अपने कलाम से फ़िज़ा में रूहानियत का माहौल बना दिया। मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि दरगाह के वरिष्ठ शिक्षक मुफ़्ती सलीम नूरी बरेलवी,मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी,मुफ़्ती अनवर अली,मुफ़्ती मोइनुद्दीन,मुफ़्ती अय्यूब,मौलाना अख्तर आदि की निगरानी में मुशायरा का आगाज़ तिलावत-ए-कुरान से कारी हसीब रज़वी कानपुरी ने किया। मुशायरा की निज़ामत (संचालन) संयुक्त रूप से मौलाना फूल मोहम्मद नेमत रज़वी व कारी नाज़िर रज़ा ने किया।
उर्स स्पेशल : गुनाहगारों चलो आक़ा ने दर खोला है जन्नत का,इधर उम्मत की हसरत पर उधर ख़ालिक़ की रहमत पर।
मुख्य रूप से नेपाल से आये शायर नेमत रज़वी,बांग्लादेश के नजमुल इस्लाम,शायर ए इस्लाम कैफुलवरा रज़वी,बनारस से आये असजद रज़ा, रांची के दिलकश राचवीं, कोलकाता के हबीबुल्लाह फ़ैज़ी,शाहजहांपुर के फहीम बिस्मिल के अलावा अमन तिलयापुरी,मुफ़्ती जमील,मुफ़्ती सगीर अख्तर मिस्वाही,मौलाना अख्तर,रईस बरेलवी,असरार नईमी,नवाब अख्तर,डॉक्टर अदनान काशिफ,इज़हार शाहजहांपुरी,महशर बरेलवी ने बारी बारी से अपने कलाम पेश किए।मुफ़्ती अनवर अली ने ये कलाम पढ़ कर खूब दाद पाई। गुनाहगारों चलो आक़ा ने दर खोला है जन्नत का,इधर उम्मत की हसरत पर उधर ख़ालिक़ की रहमत पर। दूसरा कलाम ये पढ़ा पड़ा गर वक़्त तो हम जान की बाज़ी लगा देगें,मगर आने न देगें आँच कानूने शरीयत पर।मुफ़्ती अख्तर मिस्वाही में ये कलाम पेश किया फ़कीहाने हरम को नाज़ था उनकी फ़काहत पर,हमें क्यों कर न हो फिर नाज़ अपने आला हज़रत पर। फहीम बिस्मिल शाहजहांपुरी ने पढ़ा कि उठाते है जो ऊँगली शाहेदीं की शानों रिफअत पर,भला वह पायेगें कैसे रसाई उनकी जन्नत पर।
अम्न तिलियापूरी पढ़ा कि तुम्हारी ख़ानक़ाहों को बचाया आला हज़रत ने,मियां फिर भी उतर आए हो तुम उनकी बगावत पर। डॉक्टर अदनान ने ये कलाम पेश किया जो पत्थर मारने वालों के हक़ में भी दुआगो है,है अपनी जान भी कुर्बान ऐसी जाने रहमत पर। रईस बरेलवी ने पढ़ा वह जो फख्र-ए-सुखन है इमामे अहले सुन्नत है,खुदा की रहमते बरसे हमेशा उनकी तुर्बत पर। इज़हार शाहजहांपुरी का कलाम ये है शब्बीर की सुन्नत सबक है आला हज़रत का,हम अपनी जान भी कुर्बान कर देगें शरीयत पर। नवाब अख्तर ने पढ़ा कि है जिसके उम्मती उसको बनाया शाफए महशर,बड़ा अहसान है उसका गुनाहगाराने उम्मत पर।शायर असरार नसीमी ने पढ़ा कि नबी ने दीद के गोहर लुटाए आला हज़रत पर,गए जब आप तैबा सरवरे आलम की दावत पर। अज़हर फ़ारूक़ ने पढ़ा किसी के सामने मैं हाथ फैलाने नही जाता,मेरे आक़ा हमेशा काम आते है ज़रूरत पर।