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सर्वार्थसिद्धि और रवि योग के संयोग मे निर्जला एकादशी आज

 

-व्रत में उदया तिथि कि रहेगी प्रधानता,

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बरेली। वर्ष की सभी 24 एकादशीओं में श्रेष्ठ ज्येष्ठ की निर्जला एकादशी का सर्वाधिक महत्व माना गया है। क्योंकि, यह व्रत सबसे कठिन माना जाता है। यह व्रत निर्जल और निराहार किया जाता है। इस बार एकादशी 31 मई बुधवार को मनाई जाएगी। वैसे तो एकादशी का मान गत दिवस मंगलवार को मध्यान्ह 1:07 से ही प्रारंभ हो गया और बुधवार को एकादशी का मान मध्यान्ह 1:45 तक रहेगा। उदया तिथि की प्रधानता अनुसार एकादशी 31 मई को मनाई जाएगी और व्रत का पारण 1 जून को सुबह 5:30 से 8:09 तक होगा। सबसे खास बात तो यह है कि इस बार एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का संयोग रहेगा। जिस कारण यह पर्व और ज्यादा मंगलकारी होगा। इन योगों में की गई पूजा पाठ का कई गुना ज्यादा फल मिलता है। लक्ष्मी नारायण भगवान की कृपा भक्तों पर तीव्रता से बरसती है। समस्त रोगों से मुक्ति पाने का यह पर्व भक्तों के लिए वरदान की तरह है।

 

 

*एकादशी का महत्व और संदेश*
महाभारतकाल में महर्षि वेदव्यास ने भीम को निर्जला एकादशी व्रत का महत्व बताया था। और व्रत करने से भीम के समस्त मनोरथ पूर्ण हुए थे। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत हमें जल संरक्षण का संदेश देता है। इस दिन जल को ग्रहण नहीं किया जाता है, प्रतीकात्मक रूप से यह संदेश है कि जल को बचाया जाए, ग्रहण तब ही करें जब संग्रहण और संरक्षण कर सकते हैं। हमारी संस्कृति में जल को वरूण देवता माना गया है।

 

 

*व्रत के नियम और विधि*
निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए नियम संयम का पालन एक दिन पहले ही यानी कि दशमी तिथि से ही शुरू कर दिया जाता है। भगवान विष्‍णु को पीतांबरधारी माना गया है, इसलिए उनकी पूजा में पीले रंग का खास ध्‍यान रखा जाता है। पीले रंग के वस्‍त्र पहनकर, पीले फूल, पीले फल और पीली मिष्‍ठान के साथ श्रीहरि की पूजा करें। लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर विष्‍णु भगवान की मूर्ति स्‍थापित करें और पंचामृत से स्‍नान कराएं और उसके बाद पीले फूल, पीले चावल और फल अर्पित करें। सभी सामिग्री अर्पित करने के बाद एकादशी की कथा का पठन करें और उसके बाद ओउम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। सबसे अंत में श्रीहरि की आरती करने के बाद पूजा का समापन करें। पूरे दिन सच्‍ची श्रद्धा के साथ व्रत करके शाम के पहर में स्‍नान करके फिर से भगवान की पूजा करें। अगले दिन द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करें। इस विधि के साथ व्रत करने और पूजा करने से आपको निर्जला एकादशी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्‍त होगा और ईश्‍वर आपसे प्रसन्‍न होंगे।

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