सफर नामा आला हज़रत:चार साल में कुरान शरीफ को यादकर पाई प्रसिद्धि,

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बरेली। आला हज़रत का नसब नामा अक्सर क़ुतुब में मुस्तनद रिवायतों के साथ दर्ज, इमाम अहमद रज़ा खान, बिन मौलाना नक़ी अली खान, बिन मौलाना रज़ा अली खान, बिन मौलाना हाफिज मुहम्मद काज़िम अली खान, इबने मौलाना मुहम्मद आज़म खान, बिन मुहम्मद सआदत यार खान, बिन मुहम्मद सईदुल्लाह खान, रहिमाहु मुल्लाहु तआला अलैहिम अजमईन ।

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आला हज़रत के आबाओ अजदाद (बाप दादा) कंधार अफगानिस्तान के मुअककर क़बीला बढ़ हेच के पठान थे, जिसे अफगान भी कहा जाता है, मुहम्मद सईदुल्लाह खान साहब जो आली जाह शुजाअत जंग बहादुर के लक़ब से मशहूर थे |आप की तालीम व तरबियत जद्दे अमजद हज़रत मौलाना शाह रज़ा अली खान साहब और वालिद गिरामी हज़रत मौलाना शाह नक़ी अली खान साहब क़ुद्दीसा सिर्राहुमा की आग़ोशे तरबियत व मुहब्बत में हुई और बाक़ायदा 1275 हिजरी के शुरू में ही आप की तालीम का आगाज़ हुआ,।

 

आप की उमर अभी चार साल की थी के आपने क़ुरआने पाक का नाज़िरह खम्त कर लिया, 6 छह साल की उमर में रबीउल अव्वल की महफ़िल मिम्बर पर रौनक अफ़रोज़ होकर बहुत बड़े मजमे में मिलाद शरीफ पढ़ा |आठ साल की उमर में फन्ने नहो की मशहूर किताब हिदायतुन नहो पढ़ी और खुदा दादा इल्म के ज़ोर का यह आलम था के इस छोटी सी उमर में हिदायतुन नहो की शरह अरबी में लिखी किताब के चौथाई हिस्सा उस्ताद से पढ़ते और बाक़ी खुद सुना देते, उर्दू फ़ारसी की शुरू की,

 

किताबें आपने “जनाब मिर्ज़ा गुलाम क़ादिर बेग बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह से पढ़ी (बाद में मिर्ज़ा साहब ने आपसे हिदाया पढ़ी) फिर तमाम दीनियात की तालीम व जुमला उलूम व फुनून अपने वालिद माजिद इमामुल मुतकल्लिमीन हज़रत मौलाना शाह नक़ी अली खान साहब रहमतुल्लाह अलैह से मुकम्मल फ़रमाया, उलूमे दरसिया से फरागत हासिल की और उस वक़्त में 13 साल 10 महीने और पांच दिन की उम्र थी | आपने 1000 हज़ार से ज़्यादा किताबें लिखीं | आपका विसाल जुमे के रोज़ 2 बजकर 38 पर हुआ |

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Author: newsvoxindia

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