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जातिगत आकड़ो में फंसी राजनीति , वर्षो तक नहीं मिल पायेगा बरेली को दलित सांसद

बरेली। राजनीति में पहले से ही फायदे और नुकसान के आंकलन लगा लिए जाते है। यही वजह है राजनैतिक दल उन्ही को अपना उम्मीदवार बनाते है जो जातिगत आकड़ो के हिसाब सहित आर्थिक आंकड़ों में सटीक बैठते है , हालांकि संविधान में सुरक्षित सीट का भी प्रावधान है जहां दलित प्रत्याशी ही चुनाव लड़ता है। बरेली के राजनीतिक इतिहास की बात कर ली जाए तो यहां आजादी से लेकर आज तक कोई भी दलित जनप्रतिनिधि सांसद नहीं बन सका है।

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इसका एक कारण यह भी है कि बरेली की लोकसभा सीट पर जनरल और मुस्लिम वोटों की संख्या अधिक है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल ऐसे ही व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि बनाते है जो जनरल कैटेगरी या फिर मुस्लिम समाज का हो । सवाल यही उठता है कि आजादी के इतने लंबे समय बाद भी लोगों के साथ राजनीतिक दलों की सोच में परिवर्तन की जरूरत है। अब समाज में सबका साथ सबका विकास बढ़ाने की जरूरत है। फिलहाल यहां होता दिख नहीं रहा है।

 

बसपा के जिलाध्यक्ष राजीव कुमार सिंह बताते है कि यह बात सही है कि बरेली में कोई दलित आज तक सांसद नहीं बना है पर हमे सुरक्षित सीट भी मिली हुई है जहां से हम अपना कैंडिडेट लड़ाते है। चुनाव में जातिगत आंकड़ों को भी ध्यान रखा जाता है। उसी के हिसाब से सभी राजनीतिक पार्टियां अपना कैंडिडेट उतारती है।

 

वरिष्ठ पत्रकार जनार्दन आचार्य बताते है कि उन्हें नहीं लगता कि आजादी के बाद से आजतक किसी बड़े राजनीतिक दल ने किसी दलित को टिकट दिया हो । टिकट पार्टियां उन्ही को देती है जो जातिगत आंकड़ों और आर्थिक लिहाज से मजबूत होते है।

 

 

बरेली लोकसभा सीट पर यह है बड़े चेहरे

प्रवीण सिंह ऐरन : प्रवीण सिंह ऐरन जनरल कैटेगरी से है। वह पहले से ही कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे है। वर्तमान में वह सपा से साइकिल के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे हैं।

क्षत्रपाल गंगवार : भाजपा के उम्मीदवार क्षत्रपाल ओबीसी कैटेगरी से आते है। वह यूपी सरकार में मंत्री रहने के साथ बहेड़ी से दो बार के विधायक भी रहे हैं।

मास्टर छोटे लाल गंगवार : मास्टर छोटे लाल राजनीति के मास्टर है। वह भी नवाबगंज से सपा के टिकट पर एक बार के विधायक रहे है। वह इस बार कांग्रेस को छोड़कर हाथी पर सवार होकर संसद तक जाने की इच्छा रखते है। वह भी ओबीसी कैंडिडेट है।

 

 

बरेली लोकसभा सीट से उतर रहे राजनीतिक दलों के अधिकतर उम्मीदवार जनरल के साथ ओबीसी केटेगरी से है। सवाल यही उठता है कि क्या राजनीतिक दल जातिगत आंकड़ों में ना फंसकर समाज के सभी तबकों को मौका देंगे। या यह सिलसिला यूं ही बना रहेगा। यह सवाल तब और अहम हो जाता है जब देश प्रदेश में दलित मसीहा एवं संविधान निर्माता डॉक्टर भीम राव अंबेडकर के जन्मदिन को मनाने में होड़ लगी हो।

 

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