यूपी में निकाय चुनाव हो रहे है ऐसे में छुट्ट भैया नेताओं की सभी उंगलियां घी में है। वही गेहूं की फसल काटने के बाद किसान या फिर कहे दिहाड़ी मजदूर लोकतंत्र के पर्व में चासनी में डुबकी लगाने को आतुर है। दूसरी ओर नेता भी निकाय चुनाव में अपने विरोधी को धूल चटाने के लिए पूरी तैयारी में है। इस काम के लिए नेताओं ने सोशल मीडिया एक्सपर्ट की टीम को भी लगाया है जो ट्रैफिक लाने से लेकर विपक्षी नेताओं की कमी को टटोल रहे है। इसके लिए बकायदा एक्सपर्ट यूट्यूब को खंगाल रहे है। और कमी मिलने पर उस वीडियो को डाउनलोड कर रहे है ताकि उन वीडियो से जनता को विरोधी नेता की कमी बताकर राजनीतिक फायदा लिया जा सके।
जानिए चुनाव में क्या मिल रही है मजदूरी
निकाय चुनाव के समय आते ही एक तरफ नेताओं को मेन पावर की जरूरत है तो वही गेहूं की फसल कटने के बाद खाली हुए किसानों को वक्त और जरूरत को पूरा करने के लिए रुपये पैसे की जरूरत है। एक जानकारी के मुताबिक नेताओं को निकाय चुनाव में प्रचार के लिये कार्यकर्ताओं की जरूरत है तो उस कमी को पूरा करने के लिए दिहाड़ी मजदूरों की जरूरत है।। इस काम को पूरा करने के लिए ठेकेदारों की फौज है जो नेताओं से मोल भाव करके मेन पावर को उपलब्ध कराते है। इस काम के लिए भी नेताओं का अपना प्रबंधन है इसके लिए भी एक मैनेजर नियुक्त किया जाता है जो मजदूरों की दिहाड़ी की रकम तय करता है।
300 से 400 रुपये है मजदूरों की राजनीतिक दिहाड़ी
सूत्र बताते है कि मजदूरों को इस निकाय चुनाव में काम करने के बदले 300 से 400 रुपये दिए जा रहे है। हालांकि यह रकम सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी से कम है। पर इसे व्यवहारिक जीवन में गलत इसलिये भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यहां जरूरतमन्दों के पास काम कम और मजदूरी भी ठीक है।
दिल्ली के सोशल मीडिया एक्सपर्ट पर लोकल टैलेंट भारी,
दिल्ली से आये सोशल मीडिया एक्सपर्ट निकाय चुनाव के मैदान पर उतरे हुए है। उनका कुछ दिनों का पैकेज भी 7 से 10 लाख के बीच है । वही स्थानियों अखबार भी 4 से 6 लाख के बीच अपनी सेवाओं को दे रहे है। सोशल मीडिया कर्मी पर ज्यादा बढ़िया काम करने के बाद भी 5 से 10 हजार के रुपये फंसे हुए है। इन सब बातों के बात भी स्थानीय सोशल मीडिया कर्मी दिल्ली से आई कंपनियों पर भारी पड़ रहे है। उसके पीछे का यह भी तर्क है कि वह जानते है किस मुद्दे को उठाने पर क्या फायदा हो सकता है।
चुनाव में मीडिया प्रभारी का बड़ा रोल
चुनाव में हमेशा से मीडिया प्रभारी का बड़ा रोल होता है। वह ही तय करता है प्रत्याशी के साथ किस व्यक्ति के पद पर कितना खर्च करना है । कैसे काम लेना है । चुनाव में कुछ मीडिया कर्मी भी अपनी अतिरिक्त सेवाएं देकर भी प्रत्याशी की भी मदद करते है।