बरेली | आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां फाजिले बरेलवी का 103वाँ उर्स-ए-रजवी दरगाह और मदरसा जामियातुर रज़ा में चल रहा है। इस मौके पर मरकज़ी दारूल इफ्ता बरेली शरीफ के मुफ्ती मुहम्मद अब्दुर्रहीम नश्तर फारुकी ने कहा कि दुनिया की तक़रीबन सौ यूनिवर्सिटियों में आपकी जिंदगी व खिदमात पर तहकीक हो रही है और जैसे-जैसे तहकीक आगे बढ़ रही है आपकी ज़िन्दगी और इल्मी कारनामों के नई नई बाते सामने आ रहे हैं, दुनिया के बड़े बड़े दानिशवर ये देख कर हैरान हैं कि इमाम अहमद रज़ा की ज़ाते गिरामी इतने उलूम व फुनून (विषय) में कैसे माहिर थी, ऐसी शख्सियत सैकड़ों साल बाद कोई एक पैदा होती है।
उन्होंने बड़े बड़े साइंस दानों के नज़रियात (थ्योरी) को रद्द किया है मगर अबतक किसी भी साइंसदां ने उनके दलाइल को चैलेंज नहीं दिया, जैसे ज़मीन घूमने की थ्योरी को उन्होंने ग़लत साबित किया है, आला हज़रत ने बहुत से उलूम को ज़िन्दा किया और बहुत से उलूम इजाद भी किए, वह ज़हीन ही नहीं सरापा जहन थे, उनकी ज़हानात (सोच) का आलम यह था कि सिर्फ़ साढ़े सात घंटे में कुराने करीम के तीसो पारे याद कर लिए थे, उनका फ़रमाना था कि कोई भी शख़्स कोई भी किताब एक बार मुझ को पढ़ कर सुना दे और दोबारा पूरी किताब मुझ से हूबहू सुन ले, उन्होंने कई आलमी मसाइल का हल दुनिया के सामने पेश किया, जैसे करेंसी नोट का मसला पूरी दुनिया के लिए चैलेंज बना हुआ था, बड़े बड़े मुफ्ती इस सिलसिले में कोई फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे, आपने इसका ऐसा फ़ैसला किया कि पूरी दुनिया ने इसे तस्लीम किया, मनी ऑर्डर का मसला भी पेचीदा बना हुआ था जिसे आप ही ने हल फ़रमाया, इस सिलसिले में उनकी तहकीकात और किताबें देखी जा सकती हैं। आप दुनिया के 55 उलूम व फ़ूनुन और उनकी सैकड़ों शाखों में माहिर थे, उनकी ज़ात पूरी दुनिया के लिए इल्म व फ़न का मरकज़ थी, पूरी ज़िन्दगी उन्हें अपनी किसी भी तहकीक से रुजु करने की नौबत नहीं आई, उन्हों ने अपने दीनी, इल्मी और तहकीकी खिदमात से एक अहद को मुतासिर किया है ।।