बरेली: तीज-त्योहार हों या धार्मिक आयोजन, गंगाजल के बिना संभव नहीं। कल-कल बहती गंगा की धवल धार हमारे अंतस को पावन करती है। गंगा के बिना हमारी संस्कृति अपूर्ण है। युग-युगांतर से गंगा की धार हमें जीवन का संदेश देती है। इसके जल से जहां खेतों में फसलें लहलहाती हैं, वहीं यह हमारे लिए मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती है। पंचदीपोत्सव व अन्य उत्सवों पर मोक्षदायिनी के विभिन्न स्वरूपों व गुणों से आपको परिचित कराती है गंगा। गंगा स्नान का सबसे प्रसिद्ध पावन पर्व इस बार 19 नवंबर शुक्रवार को है। यह पावन पर्व अपने आप में ही विशेष महत्व रखता है। कहते हैं इस दिन गंगा- स्नान आदि करने से सभी मनोरथो की सिद्धि होती है। मां गंगा की पूजा इस दिन विशेष मंगल दायक मानी जाती है। जन्म कुंडली में कोई भी दोष हो चाहे पितृदोष हो, काल सर्प दोष हो, या कोई अन्य, इन सभी दोषों का निवारण गंगा के तट पर जाकर स्नान, पूजन, दान, पुण्य से हो जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व मां गंगा के लिए विशेष समर्पित माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा के घाट पर सभी देवी देवता आकर मां गंगा की आरती उतारते हैं।
इसलिए इस पर्व को देव दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गंगा में किया गया स्नान- पूजन जन्म जन्मांतर के पापों का शमन करता है। यश- वैभव, धन- संपदा आदि की वृद्धि सुगमता से होती है। और प्राणी मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। इस दिन गंगा के तट पर दीपदान करने से लंबी आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु के लिए व्रत और पूजन आदि किया जाता है। तुलसी पूजन का भी खासा महत्व है। इस दिन पूजन स्नान- दान पुण्य आदि करने से सभी मनोकामना की पूर्ति सुगमता से होती है।इस पूर्णिमा का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि, इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए यह पर्व भोलेनाथ को भी समर्पित माना जाता है। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। भगवान का मत्स्य अवतार भी इसी दिन हुआ। अनेकानेक कथाएं पुराणों में इस पूर्णिमा की उल्लेखित है।
-अमृत के समान है गंगा स्नान
पवित्र गंगाजल कभी खराब नहीं होता है सैकड़ों वर्षो से घर में रखने के बाद भी गंगाजल में कीड़े नहीं पड़ते और यह शुद्ध रहता है। जबकि अन्य किसी नदी, कूप का जल दो से तीन दिन में ही खराब हो जाता है। ऐसी मान्यता है गंगा के उद्गम से नदी के रूप में आने तक यह कई दुर्लभ जड़ी बूटी वाले मार्गों से होकर गुजरती है। बूटियों के मिश्रण से जल इतना पवित्र हो जाता है कि, इसमें बैक्ट्रिया पनपते ही नही, अपितु मर जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद जिन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं। उनमें से गंगा ही एक ऐसी नदी है जिसमें दो स्थानों पर अमृत की बूंद गिरी। एक प्रयागराज और दूसरा स्थान हरिद्वार। अमृत की बूंदें गिरने के कारण गंगाजल को अमृत तुल्य माना जाता है। गंगा स्वर्ग की नदी भी मानी जाती है। स्वर्ग से निकलने के बाद शिवजी ने जटाओं में धारण किया। फिर जटाओं से निकलकर गंगा पृथ्वी लोक पर आयी। इसलिए गंगा स्वर्ग के समान सुख दायिनी है। यही कारण है गंगाजल से आचमन, गंगा जी में स्नानऔर गंगा जी के दर्शन स्वर्ग की अनुभूति कराते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा के पानी में वातावरण से ऑक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। इसके साथ-साथ दूसरी नदियों की अपेक्षा गंगा नदी में गंदगी को नष्ट करने की क्षमता 15 से 20 प्रतिशत ज्यादा है।
पवित्र गंगाजल कभी खराब नहीं होता है सैकड़ों वर्षो से घर में रखने के बाद भी गंगाजल में कीड़े नहीं पड़ते और यह शुद्ध रहता है। जबकि अन्य किसी नदी, कूप का जल दो से तीन दिन में ही खराब हो जाता है। ऐसी मान्यता है गंगा के उद्गम से नदी के रूप में आने तक यह कई दुर्लभ जड़ी बूटी वाले मार्गों से होकर गुजरती है। बूटियों के मिश्रण से जल इतना पवित्र हो जाता है कि, इसमें बैक्ट्रिया पनपते ही नही, अपितु मर जाते हैं।
-ऐसे करें इस दिन पूजा
ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा बताते है कि हमारे समाज में मान्यता है कि देव दीपावली के दिन सूर्योदय से पहले ही गंगा स्नान कर साफ वस्त्र पहने जाते हैं। कहते हैं कि गंगा स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।गंगा स्नान संभव न हो तो इस दिन पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इस दिन भगवान गणेश, भोलेशंकर और भगवान विष्णु की विधिवत तरीके से पूजा की जाती है। शाम के समय फिर से भगवान शिव की पूजा की जाती है। भोलेशंकर को फूल, घी, नैवेद्य और बेलपत्र अर्पित करें।