मोहम्मद आदिल
बरेली। जश्न-ए-चिरागाँ यानि ऩफरतों व नाउम्मीदी के खिलाफ ज़िन्दगी में रौशनी का त्योहार है। 22-23 नवम्बर बरोज़ पीर मंगलवार को यह धूमधाम से मनाया जायेगा। इसमें शिरकत करने के लिए फनकार, बुद्धिजीवी व अकीदतमंद खानकाह में आने शुरू हो गये हैं। खानकाह के प्रबन्धक शाह मोहम्मद सिब्तैन उर्फ शब्बू मियाँ ने बताया कि खानकाह में यह जश्न बीते 300 सालों से मनाया जा रहा है। शहर के बीच-ओ-बीच ख्वाजा कुतुब की पुरपेंच गलियों में से एक गली चुपचाप मोहब्बत व इंसानियत के पैग़ाम को दुनिया तक ले जाने का काम कर रही है। इस सूफी आस्ताने से भाईचारे की मुस्कराहटें खुशहाली के रास्ते व हुव्वल बतनी (देश प्रेम) की खुशबू उड़कर बिना किसी भेदभाव के सबके पास पहुँचती है। सूफिज़्म की रूह इनसे ही रौशन है।
इस पाकीज़ा रस्म का बड़ी बेताबी से लोगों को रहता है। अकीदतमंद लोग मन्नत का चिराग उठाकर रौशन करते हैं। फैज़याब होते हैं, इस महत्वपूर्ण रस्म से मोहब्बत का पैग़ाम आम होता है। भेदभाव, इख्तेलाफ, तंग नज़री जैसी बुराईयों से लड़ने का हौसला मिलता है। इसीलिए हर मज़हब-ओ-मिल्लत के लोग पूरे जोश के साथ इसमें शामिल होते हैं। जायज़ दिली मुरादें पूरी करते हैं। खानकाह के बुजुर्गों को सभी सिलसिलों के बुज़ुर्गों की दुआएँ हासिल हैं। शब्बू मियाँ बताते हैं कि इस पाकीज़ा रस्म को उर्स-ए-महबूबी भी कहते हैं। 22 नवम्बर को नियाज़िया खानदान के साहबज़ादे आदि कदीमी सोने-चाँदी के चिराँग रौशन करेंगे। इस दिन हवेली में भी चिराँगा होगा। इसी खुसूसी रस्म को 23 नवम्बर को आगे बढ़ाया जायेगा। मग़रिब बाद पहला चिराँग खानकाह के सज्जादानशीन हज़रत शाह मोहम्मद हाजी महेंदी मियाँ अकीदतमंद को प्रदान करके शुरूआत करेंगे।
उसके बाद मन्नत व मुरादों के चिराँग पर अपनी जायज़ माँग रखकर आम लोग चिराँग रौशन करेंगे। महिलाओ के लिए ख़ास इन्तेज़ाम किया है। सभी लोग मानते है कि चिराँग उठाने वालों की एक साल में मुराद पूरी हो जाती है। इस दौरान असर व मग़रिब क दरमियान महबूब-ए-सुब्हानी व महबूब-ए-इलाही के कुल की रसम पूरी की जायेगी। रात में महफिल-ए-समाँ का आगाज़ होगा। देर रात सज्जादा साहब महबूब-ए-इलाही हज़रत निज़ामउद्दीन औलिया के उर्स में शामिल होने के लिए अपने मुरीदीनों के साथ दिल्ली रवाना हो जायेंगे।