रामलीला समिति व्यवस्थापक अजेंद्र गौर ने बताया कि कुछ वर्षों पूर्व जब दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के कैरेबियन देश त्रिनिडाड (क्रिकेट की शब्दावली में वेस्टइंडीज का एक देश) से रामलीला पर रिसर्च कर रही डॉ इंद्राणी रामप्रसाद जब यहां का रामलीला का प्रदर्शन देखने के लिए जसवंतनगर पधारी तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई की रामलीला का प्रदर्शन इस तरह भी हो सकता है। बाद में दुनिया की 432 रामलीलाओं का अध्ययन करने के बाद उन्होंने जब अपनी थीसिस लिखी तो उसमें जसवंत नगर की मैदानी रामलीला को उन्होंने दुनिया की सबसे बेहतरीन रामलीला बताते हुए विभिन्न रामलीलाओं का वर्णन किया बाद में उन्हें त्रिनिडाड विश्वविद्यालय से रामलीला के प्रदर्शन विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने इसके बाद पूरी दुनिया के विभिन्न देशों में हिंदू समुदाय के लोगों तक इस रामलीला की खूबियों को वह आकर्षण को पहुंचाने का काम किया इसके बाद ही स्थानीय लोग समझ सके कि हमारी रामलीला दुनिया में बेजोड़ है। यहां रामलीला कार्यक्रमों से लोगों का लगाव भी बहुत है।
रामलीला देखने के लिए यहां बच्चों में विशेष उत्साह रहता है तथा अगली साल की रामलीला आने तक उसे देखने के लिए काफी लालायित रहते हैं। एक और खास बात यह भी है कि यहां पर बनने वाले सारे पात्र स्थानीय कस्बे के ही निवासी होते हैं अन्य स्थानों के लोग यहां के पात्र नहीं बन पाते हैं क्योंकि इस तरह की रामलीला कहीं और नहीं होती इस कारण बाहरी लोगों को यह नहीं मालूम होता कि यहां किस तरह का और कैसे अभिनय किया जाता है इस तरह बाल रूप से लेकर और वृद्ध तक का रोल स्थानीय युवा ही करते हैं।
यहां की रामलीला में सारी लीलाएं दिन में होती हैं । राम-लक्ष्मण, सीता रोजाना नरसिंह मंदिर से सजकर कहारों के कंधे पर सजे विमान के जरिये रामलीला मैदान पहुंचते हैं। मेला मैदान और नगर में ध्वनि विस्तारक गूंजने लगे हैं। इटावा की नुमाइश में सजावट करने वाली अलीगढ़ की बिजली कम्पनी ने रामलीला मैदान में सजावट लगभग पूरी हो चुकी है। तीर तलवार, मुखौटे, ड्रेसों आदि को दुरुस्त करने में कारीगर लगे है। रावण का विशालकाय सिर भी बनने लगा है। लंका दहन और भरत मिलाप के लिए आतिश बाजी के रिहर्सल के लिए आतिशबाजी चलाने वाले भी आने लगे है। बताया गया है कि 10 हजार तीर बनाने का काम भी तेजी से चल रहा।